उत्तर प्रदेश में चुनाव आयोग की पारदर्शिता की पहल: 25 राजनीतिक दलों की सुनवाई

चुनाव आयोग की नई पहल
उत्तर प्रदेश में चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) ने उन 25 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ सुनवाई की, जिन्हें निष्क्रिय या अमान्य घोषित किया गया है। यह सुनवाई उन दलों को अपना पक्ष रखने का अंतिम अवसर प्रदान करने के लिए आयोजित की गई थी, ताकि यह तय किया जा सके कि उनकी मान्यता को पूरी तरह से रद्द किया जाए या नहीं।चुनाव आयोग नियमित रूप से राजनीतिक दलों की गतिविधियों की निगरानी करता है। वे दल जो लंबे समय से चुनाव नहीं लड़ते, फंड रिपोर्ट जमा नहीं करते, या जिनका अस्तित्व केवल कागजों पर है, उन्हें 'निष्क्रिय' या 'डी-रजिस्टर्ड' घोषित किया जाता है। ऐसे दलों का उपयोग अक्सर मनी लॉन्ड्रिंग या अन्य अवैध गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश के सीईओ ने इन 25 डी-रजिस्टर्ड दलों के प्रतिनिधियों को बुलाया है ताकि वे अपनी सक्रियता साबित कर सकें और यह दिखा सकें कि वे चुनाव लड़ने में रुचि रखते हैं। यदि ये दल अपनी सक्रियता साबित नहीं कर पाते हैं, तो उनकी मान्यता स्थायी रूप से रद्द कर दी जाएगी। इस कदम का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को स्वच्छ बनाना और केवल वास्तविक राजनीतिक दलों को मान्यता देना है।
यह कार्रवाई चुनाव आयोग के राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा है, जिसके तहत उन हजारों राजनीतिक दलों की पहचान की जा रही है जो केवल कागजों पर मौजूद हैं और उनका कोई वास्तविक राजनीतिक कार्य नहीं है। इससे चुनाव आयोग को अपने डेटाबेस को साफ करने और चुनावी खर्च में पारदर्शिता लाने में मदद मिलेगी।
यह सुनवाई इस बात पर भी जोर देती है कि चुनाव आयोग एक मजबूत नियामक संस्था है, जो राजनीतिक दलों पर जवाबदेही सुनिश्चित करती है। यह सुनिश्चित करेगा कि लोकतंत्र में केवल वही दल भाग लें जो वास्तव में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं और नियमों का पालन करते हैं। भविष्य में, ऐसे और भी कदम उठाए जाने की संभावना है जो भारत में चुनाव प्रक्रिया को और अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बनाएंगे।