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उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा: जंगल ने बचाई कई जिंदगियां

उत्तराखंड के धराली गांव में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने न केवल घरों को मलबे में बदल दिया, बल्कि कई जिंदगियों को भी खतरे में डाल दिया। जब भूस्खलन ने तबाही मचाई, तो कुछ लोग जंगल की ओर भागे। इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) के जवानों ने उनकी मदद की और तीन दिनों तक उन्हें सुरक्षित रखा। इस घटना ने यह दिखाया कि कुदरत की अनदेखी कितनी महंगी पड़ सकती है। जानें इस त्रासदी की पूरी कहानी और लोगों की संघर्ष की दास्तान।
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धराली गांव में आई भीषण आपदा

उत्तराखंड के धराली गांव में हाल ही में आई भयंकर प्राकृतिक आपदा ने न केवल घरों को मलबे में बदल दिया, बल्कि लोगों की मेहनत और सपनों को भी चंद क्षणों में छीन लिया। इस दुखद स्थिति में, कुछ लोगों की जान एक अनपेक्षित सहारे से बच गई - जंगल। जब मंगलवार को मूसलधार बारिश के साथ भूस्खलन ने धराली में तबाही मचाई, तो कई परिवारों ने अपनी जान बचाने के लिए पहाड़ी जंगल की ओर दौड़ लगाई। इन लोगों के पास न तो कोई योजना थी और न ही समय, केवल जान बचाने की चिंता थी।


जंगल में उन्हें राहत तब मिली जब इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) के जवानों ने उनकी मदद की। ये जवान न केवल उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले गए, बल्कि तीन दिनों तक उन्हें भोजन, आश्रय और सहारा भी प्रदान किया। शुक्रवार को सभी को चिन्यालीसौड़ और अन्य सुरक्षित स्थलों पर हेलिकॉप्टर के माध्यम से पहुंचाया गया।


बचन सिंह का परिवार भी उन लोगों में शामिल है, जिन्हें इस त्रासदी ने बेघर कर दिया। जब वे चिन्यालीसौड़ हेलीपैड पहुंचे, तो उनकी पत्नी के चेहरे पर भय और सदमे की छाया स्पष्ट थी। संवाददाता द्वारा पूछे जाने पर, उन्होंने कहा, "कुछ याद नहीं... बस इतना पता है कि घर, होटल, गाड़ी सब कुछ खत्म हो गया। किसी तरह भागे और जंगल में छुपे। बारिश हो रही थी, कपड़े भीग गए थे... जो शरीर पर थे, वही हमारे पास थे।"


उन्होंने कहा कि यदि जंगल नहीं होता, तो शायद वे आज जिंदा नहीं होते। ITBP के जवानों को उन्होंने 'फरिश्ता' माना, जिन्होंने न केवल उन्हें ढांढस बंधाया, बल्कि तीन दिन तक परिवार की तरह उनका साथ दिया। धराली के लोगों की यह कहानी एक चेतावनी है कि कुदरत की अनदेखी कितनी भारी पड़ सकती है। केदारनाथ के बाद, धराली की यह आपदा फिर से याद दिला रही है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को किस हद तक तैयार रहना चाहिए।