उत्तराखंड में भूस्खलन: एक माँ की अंतिम कोशिश और परिवार की त्रासदी
प्राकृतिक आपदा का कहर
उत्तराखंड के टिहरी जिले के कुंतारी लागफली गांव में शुक्रवार रात एक भूस्खलन ने तबाही मचाई। जब एनडीआरएफ की टीम ने मलबा हटाना शुरू किया, तो उन्हें एक दिल दहला देने वाला दृश्य देखने को मिला। कांता देवी, 38 वर्ष, मलबे में दबी हुई थीं, और उनके 10 वर्षीय जुड़वां बेटे उनकी गोद में थे। यह दृश्य केवल मृत्यु का नहीं, बल्कि एक माँ की अंतिम कोशिश का प्रतीक था, जिसने अपने बच्चों को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की।कांता देवी के पति, कुंवर सिंह, इस आपदा के एकमात्र जीवित बचे सदस्य हैं। उन्होंने 16 घंटे तक मलबे में दबे रहने के बाद जब बचावकर्मियों द्वारा निकाले गए, तो वह चमत्कारिक रूप से जीवित थे, लेकिन उनका पूरा परिवार खो चुका था। उन्होंने अपने नष्ट हुए घर की ओर देखा और वहीं गिर पड़े। यह केवल एक व्यक्ति की हार नहीं थी, बल्कि एक पूरे परिवार की बर्बादी थी।
32 घंटे का रेस्क्यू ऑपरेशन
एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार 32 घंटे तक मलबा हटाने में जुटी रहीं। बारिश, कीचड़ और टूटी सड़कों ने रेस्क्यू में बाधा डाली, लेकिन टीम की उम्मीद जिंदा रही। हर मृत शरीर को निकालना और उन्हें सम्मान देना उनकी प्राथमिकता थी।
भूस्खलन ने केवल कुंतारी गांव को ही नहीं, बल्कि सौ-तनोला और लागा सरपानी गांवों को भी प्रभावित किया। सौ-तनोला में 8 अनुसूचित जाति के परिवारों ने अपने घर पूरी तरह खो दिए। सरपानी में 'सुरक्षित' कहे जाने वाले घर भी नदी में बह गए। बचे हुए लोगों के पास न तो घर है, न जमीन, और न ही कोई उम्मीद।
जीवित बचे लोगों की आपबीती
सूबेदार मेजर दिलबर सिंह रावत की पत्नी उनके सामने ही बह गईं। संगीता देवी, एक विधवा, जिन्होंने अपनी बेटी के साथ मेहनत करके जीवन यापन किया, ने एक रात में सब कुछ खो दिया। पूर्व ग्राम प्रधान चंद्रकला सती ने कहा, "आधी रात को जो आवाजें आईं, वो अब भी कानों में गूंज रही हैं। सुबह उठे तो हमारा मोहल्ला ही मिट चुका था।"
अनियोजित विकास पर उठे सवाल
ग्रामीणों ने सरकार और निर्माण एजेंसियों पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि अनियोजित विकास, गलत तरीके से फेंका गया निर्माण मलबा और पेड़ों की कटाई ने इस आपदा को और भी विनाशकारी बना दिया। नरेंद्र सिंह जैसे ग्रामीणों ने दूसरों को चेतावनी देकर अपनी जान गंवाई, लेकिन प्रशासन अब तक कोई जवाब नहीं दे पाया।