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ऑपरेशन ब्लू स्टार: सिखों की अलगाववादी मांग का इतिहास

ऑपरेशन ब्लू स्टार, जो 1984 में हुआ, सिखों की अलगाववादी मांगों और भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है। इस लेख में, हम इस ऐतिहासिक घटना के पीछे के कारणों, खालिस्तान के सपने और भिंडरावाले के उदय की चर्चा करेंगे। जानें कैसे यह घटना भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद अध्यायों में से एक बन गई।
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ऑपरेशन ब्लू स्टार: सिखों की अलगाववादी मांग का इतिहास

ऑपरेशन ब्लू स्टार: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

ऑपरेशन ब्लू स्टार: सिखों द्वारा स्वतंत्रता से पहले ही अलग राष्ट्र की मांग की नींव रखी गई थी। 1942 में क्रिप्स मिशन के दौरान, अकाली नेताओं ने झेलम से सतलुज तक सिख राज्य की मांग की, जिसे ब्रिटिश सरकार ने अस्वीकार कर दिया।


खालिस्तान का सपना और अंतरराष्ट्रीय समर्थन

1971 में, पूर्व वित्त मंत्री जगजीत सिंह चौहान ने विदेशों में खालिस्तान के सपने को फिर से जीवित किया। लंदन में एक दूतावास स्थापित कर, उन्होंने पासपोर्ट और मुद्रा भी छापी। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित विज्ञापन के पीछे पाकिस्तान की आईएसआई का हाथ बताया गया, जिसमें खालिस्तान को उपमहाद्वीप की शांति की कुंजी बताया गया।


पंजाब का पुनर्गठन और नई संभावनाएं

1966 में भाषाई आधार पर पंजाब का पुनर्गठन हुआ, जिससे सिखों को एक सांस्कृतिक पहचान मिली और अलग राज्य की मांग में कमी आई। 1972 में ज्ञानी जैल सिंह ने मुख्यमंत्री बनकर सिख भावनाओं को राजनीतिक रूप से भुनाया।


आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का महत्व

1973 में सरदार कपूर सिंह की मदद से आनंदपुर साहिब प्रस्ताव तैयार किया गया, जिसमें पंजाब को अधिक स्वायत्तता देने की मांग की गई। हालांकि, इसका स्वरूप आज भी विवादित है। 1980 में कांग्रेस की जीत के बाद इस प्रस्ताव को फिर से महत्व मिला।


भिंडरावाले का उदय

दमदमी टकसाल के नेता भिंडरावाले ने सिखों की पहचान और जनसंख्या घटने के मुद्दे को उठाकर आंदोलन को गति दी। उन्होंने कहा, 'हम भारत में नहीं रह सकते।' 1982 में सतलुज-यमुना लिंक नहर के विरोध में अकाली दल और भिंडरावाले ने 'धर्म युद्ध मोर्चा' शुरू किया।


ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत

5 जून 1984 को, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे उग्रवादियों को हटाने के लिए सेना को भेजा। टैंकों और भारी हथियारों से लैस सेना ने जब धावा बोला, तो अमृतसर की गलियां युद्धभूमि बन गईं। यह मुठभेड़ भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद और दर्दनाक अध्यायों में से एक बन गई।