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कचरी की खेती: कम लागत में अधिक लाभ के लिए सम्पूर्ण विधि और लाभ

कचरी की खेती राजस्थान के किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प बनती जा रही है। यह कम पानी और संसाधनों में उगती है, फिर भी इसकी बाजार में मांग तेजी से बढ़ रही है। इस लेख में, हम कचरी की खेती की विधि, सही जलवायु और मिट्टी का चयन, बुवाई और देखभाल की प्रक्रिया, और अधिक मुनाफे के लिए सुझावों पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे कचरी की खेती किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर सकती है।
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कचरी की खेती: कम लागत में अधिक लाभ के लिए सम्पूर्ण विधि और लाभ

कचरी की खेती: कम लागत में अधिक लाभ

Kachri Farming: More profit in less cost, know the complete method and benefits: कचरी की खेती राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रही है। यह बेलवाली फसल कम पानी और संसाधनों में उगती है, फिर भी चटनी, अचार, मसाले और औषधीय उपयोग (Medicinal Use) के कारण इसकी बाजार मांग बढ़ रही है।


कम लागत और अच्छी उपज के साथ यह फसल किसानों की आय बढ़ाने में मददगार है। कचरी न केवल पोषक तत्वों से भरपूर है, बल्कि इसके औषधीय गुण, जैसे पाचन सुधार और वजन नियंत्रण, इसे और भी खास बनाते हैं। आइए, कचरी की खेती की विधि, लागत और मुनाफे के बारे में जानते हैं।


सही जलवायु और मिट्टी का चयन Kachri Farming


कचरी की खेती (Kachri Farming) के लिए 25°C से 40°C का तापमान आदर्श है। यह फसल गर्म जलवायु और सूखे को आसानी से सहन कर लेती है, जिससे यह राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। 300-500 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में यह बिना अधिक सिंचाई के उगाई जा सकती है।


मिट्टी के लिए रेतीली या रेतीली-दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो। मिट्टी का pH 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। खेत तैयार करते समय 8-10 टन गोबर की खाद (Organic Manure) मिलाने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।


बुवाई और देखभाल की आसान विधि


कचरी की खेती (Kachri Farming) के लिए बुवाई का सबसे अच्छा समय जून-जुलाई (वर्षा ऋतु) या मार्च-अप्रैल (गर्मी) है। प्रति हेक्टेयर 3-4 किलोग्राम स्वस्थ बीज पर्याप्त हैं। बीजों को जैविक फफूंदनाशी से उपचारित करें। कतार से कतार 2-2.5 मीटर और पौधे से पौधे 0.5-1 मीटर की दूरी रखें।


सिंचाई कम आवश्यक है, लेकिन अंकुरण, बेल बढ़ने, फूल आने और फल बनने के समय हल्की सिंचाई करें। खरपतवार नियंत्रण (Weed Control) के लिए 15-20 और 30-35 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। पेंडिमिथालिन जैसे खरपतवारनाशी का उपयोग भी कर सकते हैं। कीटों जैसे फल मक्खी और सफेद मक्खी से बचाव के लिए नीम आधारित कीटनाशक या फेरोमोन ट्रैप का इस्तेमाल करें।


अधिक मुनाफे का रास्ता


कचरी की खेती (Kachri Farming) कम लागत में उच्च मुनाफा देती है। अच्छी तकनीकों से प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल उपज मिल सकती है। कचरी के सूखे पाउडर (Kachri Powder) और अचार की बढ़ती मांग मसाला और आयुर्वेदिक उद्योग में है। कटाई 75-90 दिन बाद शुरू होती है, जब फल पीले हो जाते हैं।


सूखे फलों को एयरटाइट कंटेनर में स्टोर करें। कम सिंचाई, कम उर्वरक और स्थानीय बाजारों में अच्छी कीमत इसे लाभकारी बनाती है। कचरी की खेती (Kachri Farming) ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देती है और किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त करती है।