कश्मीर के मुश्ताक अहमद भट: आतंकवाद से लड़ाई की प्रेरणादायक कहानी
कश्मीर में आतंकवाद का सामना
कश्मीर में आतंकवाद के कठिन दौर में, मुश्ताक अहमद भट की कहानी एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरी है। उन्होंने आतंकवाद के रास्ते पर चलते हुए भारतीय सेना से जुड़कर आतंकवाद का सामना किया। उनका नाम कश्मीर के संघर्षपूर्ण इतिहास में एक प्रेरणा के रूप में गूंजता है।मुश्ताक की कहानी उस समय शुरू होती है जब 1980 के दशक में कश्मीर में हिंसा बढ़ने लगी थी। उस समय युवा यह मानते थे कि बंदूक उठाने से उन्हें सम्मान मिलेगा, जिससे कई युवा गलत रास्ते पर चले गए। मुश्ताक, जो उस समय 18-19 साल के थे, ने सोचा कि अगर उनके पास बंदूक होगी, तो वह अपने परिवार की सुरक्षा कर सकेंगे।
इस सोच ने उन्हें पाकिस्तान भेजने की राह दिखाई, जहां उन्होंने जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों से प्रशिक्षण लिया।
पाकिस्तान में प्रशिक्षण और उसके परिणाम
मुश्ताक ने बताया कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में उनका प्रशिक्षण कठिन था। उन्हें हथियार चलाने और विस्फोटक बनाने का प्रशिक्षण मिला। शुरू में यह संघर्ष उन्हें आज़ादी के लिए किया जा रहा लगता था, लेकिन पाकिस्तान के दोगले व्यवहार को देखकर उन्हें एहसास हुआ कि यह केवल एक भ्रम है।
उन्होंने समझा कि उनका असली उद्देश्य अपने परिवार की सुरक्षा करना है, न कि किसी झूठे आंदोलन का हिस्सा बनना।
डबल एजेंट की भूमिका
1990 में, मुश्ताक कश्मीर लौटे, लेकिन उनका स्वागत अच्छा नहीं था। आत्मसमर्पण करने की कोशिश में उन्हें धमकियां मिलीं। 1994 तक, उन्होंने कई हमलों में भाग लिया, लेकिन एक दिन उन्होंने भारतीय सुरक्षा बलों से गुप्त संपर्क किया और आतंकवादी नेटवर्क के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी।
इससे उनकी ज़िंदगी की दिशा बदल गई। वह 5 सालों तक एक डबल एजेंट के रूप में काम करते रहे, जहां उन्होंने भारतीय सेना को महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी दी।
भारतीय सेना में शामिल होना
1994 के बाद, मुश्ताक ने भारतीय सेना से औपचारिक रूप से जुड़ने का निर्णय लिया। उनकी खुफिया जानकारी और आतंकवादियों की पहचान करने की क्षमता ने सेना के ऑपरेशंस को सफल बनाया। उन्होंने 300 से अधिक आतंकियों को मार गिराया और घाटी में आतंकवाद का सफाया करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने कहा, "यह सब मेरे मिशन का हिस्सा था।"
एक नया उद्देश्य
मुश्ताक का जीवन कई बदलावों से भरा रहा। उनकी जानकारी ने न केवल आतंकवादी हमलों को रोकने में मदद की, बल्कि उन्होंने कट्टरपंथी युवाओं को मुख्यधारा में लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सेवानिवृत्ति के बाद, मुश्ताक का योगदान कश्मीर की शांति प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण था। उन्होंने हजारों युवाओं को एक नई राह दिखाई।