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कोलकाता की अदालत ने वजाहत खान की जमानत याचिका को किया खारिज, शर्मिष्ठा पनौली को मिली अंतरिम राहत

कोलकाता की अदालत ने वजाहत खान की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है, जिन पर धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप है। इस मामले में शर्मिष्ठा पनौली को अंतरिम जमानत मिली है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। जानें इस विवाद की पूरी कहानी और इसके पीछे के कारण।
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कोलकाता की अदालत ने वजाहत खान की जमानत याचिका को किया खारिज, शर्मिष्ठा पनौली को मिली अंतरिम राहत

कोलकाता में वजाहत खान की जमानत याचिका खारिज

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनौली के खिलाफ शिकायत दर्ज करने वाले वजाहत खान की जमानत याचिका को कोलकाता की एक अदालत ने अस्वीकार कर दिया है। वजाहत खान पर आरोप है कि उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से धार्मिक भावनाओं को भड़काया और आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया। पुलिस के समन को नजरअंदाज करने के बाद, वजाहत खान को 9 जून को गिरफ्तार किया गया।


धार्मिक अपमान के आरोपों ने बढ़ाई स्थिति की गंभीरता

यह मामला तब और गंभीर हो गया जब एक हिंदू संगठन ने वजाहत खान के खिलाफ धार्मिक अपमान का आरोप लगाते हुए औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। वहीं, शर्मिष्ठा पनौली को कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ।


पुलिस के समन का उल्लंघन

वजाहत खान के खिलाफ गोल्फ ग्रीन पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। उन पर सोशल मीडिया के जरिए नफरत फैलाने और धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाया गया। पुलिस ने तीन बार उनके गार्डन रीच स्थित निवास पर समन भेजा, लेकिन वे पूछताछ के लिए नहीं आए। अंततः, लगातार छापेमारी के बाद उन्हें 9 जून को गिरफ्तार किया गया।


आपत्तिजनक टिप्पणियों का मामला

'श्रीराम स्वाभिमान परिषद' ने 2 जून को गार्डन रीच पुलिस थाने में एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। इस शिकायत में वजाहत खान पर हिंदू देवी-देवताओं और धार्मिक परंपराओं के खिलाफ आपत्तिजनक और भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि उन्होंने हिंदू समुदाय को 'बलात्कारी संस्कृति' और 'मूत्र पीने वाला' जैसे शब्दों से संबोधित किया। शिकायत में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई धाराओं और आईटी एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई की मांग की गई है।


शर्मिष्ठा पनौली को मिली अंतरिम जमानत

दूसरी ओर, शर्मिष्ठा पनौली को ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित टिप्पणी के मामले में अंतरिम जमानत मिल गई है। हालांकि, कोर्ट ने कुछ सख्त शर्तें भी लगाई हैं - उन्हें देश छोड़ने से पहले मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी और ₹10,000 की राशि जमानत के रूप में जमा करनी होगी। कोर्ट ने पहले सुनवाई के दौरान कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है और इसका उपयोग धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता।