खुरपका-मुंहपका रोग: किसानों के लिए एक गंभीर खतरा

खुरपका-मुंहपका रोग: मवेशियों का दुश्मन
खुरपका-मुंहपका रोग: किसानों की आय के लिए खतरा: यह रोग एक खामोश खतरे की तरह है, जो अचानक आपके मवेशियों को बीमार कर सकता है और किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है। यह संक्रामक बीमारी गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सुअर जैसे खुरदार जानवरों को प्रभावित करती है। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है! सही जानकारी, समय पर टीकाकरण और सावधानी से आप अपने पशुधन की रक्षा कर सकते हैं। आइए, इस रोग के बारे में विस्तार से जानते हैं और इसके खिलाफ कैसे लड़ना है।
खुरपका-मुंहपका रोग: एक विषाणुजनित बीमारी
भारत में पशुपालन केवल आय का स्रोत नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन खुरपका-मुंहपका रोग इस आधार को हिला सकता है। यह एक विषाणुजनित बीमारी है, जो अपैथोवायरस के कारण होती है। भारत में इसके O, A, और ASIA-1 प्रकार सबसे आम हैं। इसे विभिन्न स्थानों पर खुरमुही, खरेडू, या खुरपा जैसे नामों से भी जाना जाता है। इसकी सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह एक पशु से दूसरे में तेजी से फैलता है, जिससे पूरा झुंड कुछ ही दिनों में प्रभावित हो सकता है।
रोग का प्रसार कैसे होता है?
खुरपका-मुंहपका रोग का वायरस अत्यंत चालाक है। यह रोगी पशु की लार, दूध, मल, मूत्र और सांसों के माध्यम से फैलता है। यदि कोई स्वस्थ पशु इनसे संपर्क करता है, तो वह भी संक्रमित हो सकता है। गंदा चारा, पानी, बर्तन, कपड़े और यहां तक कि इंसानों के जूते भी इस वायरस को कुछ समय तक जीवित रख सकते हैं। बारिश के मौसम में, नमी भरी हवा इसे 250-300 किलोमीटर तक फैला सकती है। इसलिए, पशुशाला की सफाई और सावधानी बरतना अत्यंत आवश्यक है।
पशुओं के लक्षणों को पहचानें
खुरपका-मुंहपका के लक्षण स्पष्ट होते हैं, जिससे किसान आसानी से पहचान सकते हैं। शुरुआत में पशु को तेज बुखार (105-107°F) होता है। दूध देने वाले पशु का दूध अचानक कम हो जाता है। मुंह से झागदार लार गिरने लगती है, और जीभ, मसूड़ों या होठों पर फफोले बन जाते हैं, जो फटकर घाव बन जाते हैं। खुरों में भी घाव होने से पशु लंगड़ाने लगता है। थनों पर फफोले बनने से दूध निकालना मुश्किल हो जाता है। छोटे बछड़े या मेमने इस रोग से जान भी गंवा सकते हैं। लक्षण दिखते ही तुरंत पशु चिकित्सक को बुलाएं।
लक्षणों से राहत और रोग से बचाव
दुर्भाग्य से, खुरपका-मुंहपका रोग का कोई सीधा इलाज नहीं है। लेकिन लक्षणों को कम करके पशु को राहत दी जा सकती है। सबसे पहले रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग करें। मुंह के घावों को बोरिक एसिड, पोटेशियम परमैंगनेट या फिटकरी के घोल से धोएं। खुरों के घावों को भी पोटाश के घोल से साफ कर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं। पशु चिकित्सक बुखार और दर्द के लिए दवाएं दे सकते हैं। पशु को पौष्टिक खाना, साफ पानी और सूखा बिछावन दें। सही देखभाल से पशु जल्दी ठीक हो सकता है।
टीकाकरण: सबसे प्रभावी उपाय
खुरपका-मुंहपका रोग से बचाव ही इसका सबसे बड़ा इलाज है। इसके लिए टीकाकरण अत्यंत आवश्यक है। चार महीने से बड़े सभी पशुओं को प्राथमिक टीका लगवाएं। एक महीने बाद बूस्टर डोज दें। फिर हर छह महीने में टीकाकरण दोहराएं। नई सुई और सिरिंज का इस्तेमाल करें। नए पशुओं को 14 दिन तक अलग रखें। पशुशाला को 4% सोडियम कार्बोनेट से धोएं। रोगी पशु के मल, मूत्र और बर्तनों को अच्छे से साफ करें। सामूहिक चराई से बचें। ये छोटे कदम आपके पशुधन की रक्षा कर सकते हैं।
किसानों के लिए आर्थिक संकट
खुरपका-मुंहपका रोग केवल पशुओं को ही नहीं, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है। दूध उत्पादन में कमी, पशुओं की कार्यक्षमता में गिरावट, गर्भपात और बांझपन जैसे नुकसान छोटे किसानों के लिए भारी पड़ते हैं। यदि यह रोग पूरे गांव में फैल जाए, तो पशु व्यापार और स्थानीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है। इसलिए समय पर टीकाकरण और सावधानी न केवल पशुओं, बल्कि आपकी आजीविका को भी सुरक्षित रखती है।