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चीन और पाकिस्तान का नया कूटनीतिक प्रयास: SAARC के स्थान पर नया समूह

चीन और पाकिस्तान ने मिलकर SAARC संगठन को प्रतिस्थापित करने के लिए एक नया गुट बनाने की योजना बनाई है। इस संदर्भ में कुनमिंग में हुई बैठक में पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भाग लिया। हालांकि, बांग्लादेश ने इस नए गठबंधन के विचार को खारिज कर दिया है। भारत को इस नए समूह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है, लेकिन वर्तमान संबंधों के कारण सकारात्मक प्रतिक्रिया की संभावना कम है। जानें इस नई कूटनीतिक चाल के पीछे की पूरी कहानी।
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चीन और पाकिस्तान का नया कूटनीतिक प्रयास: SAARC के स्थान पर नया समूह

चीन-पाकिस्तान की नई रणनीति

चीन और पाकिस्तान ने मिलकर एक नई कूटनीतिक योजना बनाई है। रिपोर्टों के अनुसार, ये दोनों देश दक्षिण एशिया में एक नया गुट बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य SAARC संगठन को प्रतिस्थापित करना है। इस योजना के पीछे चीन का हाथ बताया जा रहा है, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश इसका समर्थन कर रहे हैं। इस संदर्भ में चीन के कुनमिंग में एक बैठक भी आयोजित की गई थी, जिसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रतिनिधि शामिल हुए।


बैठक का उद्देश्य

सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में नए समूह की रूपरेखा तैयार की गई। यह बैठक मई में हुई त्रिपक्षीय वार्ता के बाद आयोजित की गई थी, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विस्तार और तालिबान-शासित अफगानिस्तान में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा की गई थी।


SAARC संगठन का परिचय

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुई थी। इस संगठन के 7 संस्थापक सदस्य देश हैं, और 2007 में अफगानिस्तान भी इसमें शामिल हुआ। वर्तमान में, SAARC संगठन 2016 से निष्क्रिय है, और इसकी अंतिम बैठक काठमांडू में 2014 में हुई थी।


बांग्लादेश की स्थिति

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे SAARC के सदस्य इस नए समूह में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, बांग्लादेश ने इस नए गठबंधन के विचार को खारिज कर दिया है। बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार एम तौहीद हुसैन ने कहा कि यह बैठक राजनीतिक नहीं थी और किसी नए गठबंधन पर चर्चा नहीं हुई।


भारत की संभावित प्रतिक्रिया

रिपोर्टों के अनुसार, भारत को इस नए समूह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है, लेकिन चीन और पाकिस्तान के साथ वर्तमान संबंधों को देखते हुए नई दिल्ली की सकारात्मक प्रतिक्रिया की संभावना कम है।