चुनाव आयोग की स्पष्टता: मतदाता की गोपनीयता है सर्वोपरि

मतदाता की गोपनीयता की सुरक्षा
विपक्षी दलों द्वारा मतदान केंद्रों की वीडियो फुटेज को सार्वजनिक करने की मांग पर चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि इससे मतदाता की गोपनीयता और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को खतरा हो सकता है। आयोग ने कहा कि पारदर्शिता के नाम पर उठाए गए इस कदम से संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
मतदाता की पहचान की सुरक्षा
चुनाव आयोग के अधिकारियों ने बताया कि 1950 और 1951 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार, मतदाता की पहचान और गोपनीयता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। यदि वीडियो फुटेज साझा की जाती है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन मतदाता आया और किसने मतदान नहीं किया, जिससे दबाव या धमकी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
फुटेज का दुरुपयोग
अधिकारियों ने चेतावनी दी कि यदि किसी पार्टी को किसी बूथ पर अपेक्षित वोट नहीं मिलते, तो वे फुटेज का उपयोग अपने समर्थकों या विरोधियों की पहचान के लिए कर सकती हैं, जिससे चुनाव के बाद उत्पीड़न की स्थिति बन सकती है। इससे चुनाव की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है।
सीसीटीवी और वेबकास्टिंग का उद्देश्य
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि सीसीटीवी और वेबकास्टिंग का उद्देश्य केवल आंतरिक निगरानी है, और यह कोई सार्वजनिक रिकॉर्ड नहीं है। ये फुटेज केवल 45 दिनों तक सुरक्षित रखी जाती हैं, ताकि कानूनी याचिका के मामले में साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सके। यदि कोई याचिका नहीं आती है, तो इस डेटा को नष्ट कर दिया जाता है।
नए नियमों का प्रभाव
दिसंबर 2023 में कानून मंत्रालय ने चुनाव संचालन नियमों में बदलाव करते हुए सार्वजनिक रूप से वीडियो डेटा की उपलब्धता पर रोक लगाई, ताकि इसका गलत इस्तेमाल न हो सके। सोशल मीडिया पर भ्रामक प्रचार और वीडियो के चयनात्मक उपयोग की घटनाओं ने आयोग को इस नीति की समीक्षा करने के लिए प्रेरित किया।
गोपनीयता पर कोई समझौता नहीं
चुनाव आयोग ने दोहराया कि मतदाता की गोपनीयता संवैधानिक रूप से सर्वोच्च प्राथमिकता है और इस पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।