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छत्तीसगढ़ के चिरमिरी में लिफ्ट संस्कृति: अनोखी यात्रा की परंपरा

छत्तीसगढ़ का चिरमिरी शहर अपनी अनोखी लिफ्ट संस्कृति के लिए जाना जाता है, जहां लोग एक-दूसरे को लिफ्ट देकर यात्रा करते हैं। इस पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक चुनौतियों के कारण सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था नहीं हो पाई है। स्थानीय लोग इसे अपनी परंपरा और आपसी सहयोग का प्रतीक मानते हैं। जानें इस अनोखी संस्कृति के पीछे की कहानी और इसके सामाजिक पहलुओं के बारे में।
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छत्तीसगढ़ के चिरमिरी में लिफ्ट संस्कृति: अनोखी यात्रा की परंपरा

चिरमिरी की अनोखी पहचान

भारत के विभिन्न शहरों और कस्बों में ऑटो और टैक्सी सामान्य दृश्य हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ का चिरमिरी अपनी विशेष पहचान के लिए जाना जाता है। यहां के लोग सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर नहीं रहते, बल्कि एक-दूसरे को 'लिफ्ट' देकर यात्रा करते हैं। यही कारण है कि यह शहर अपने अनोखे 'लिफ्ट कल्चर' के लिए पूरे प्रदेश में चर्चित है।


भौगोलिक चुनौतियाँ

चिरमिरी एक पहाड़ी शहर है, जो खनन क्षेत्र में बसा हुआ है। इस नगर का भूगोल इतना कठिन है कि यहां ऑटो रिक्शा या टैक्सी का संचालन संभव नहीं है। 29 किलोमीटर में फैले इस शहर के विभिन्न इलाके जैसे पोड़ी, हल्दी बाड़ी, बड़ा बाजार, डोम्न हिल और कोरिया कॉलियरी आपस में 1 से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। घने जंगल और ऊंची-नीची सड़कों के कारण यहां केवल जीप या निजी गाड़ियां ही चल पाती हैं।


लिफ्ट देना बनी संस्कृति

स्थानीय परंपरा का विकास


स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब यह क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा था, तब कोयला खदानों में काम करने वाले कुछ कर्मचारियों के पास ही स्कूटर होते थे। धीरे-धीरे, रास्ते में मिलने वाले लोगों को बैठाने की आदत ने एक परंपरा का रूप ले लिया। आज, यदि कोई राहगीर सड़क किनारे खड़ा दिखता है, तो बाइक या कार सवार उसे बिना किसी हिचकिचाहट के लिफ्ट दे देते हैं। यह आदत अब यहां की सामाजिक संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है।


परिवहन की असफलता

परिवहन सेवाओं की चुनौतियाँ


चिरमिरी में कई बार शहर बस सेवा शुरू करने का प्रयास किया गया। पूर्व महापौर दम्रू रेड्डी के कार्यकाल में बसें चलाई गईं, लेकिन खराब भूगोल और समय के साथ गाड़ियों की स्थिति बिगड़ने के कारण यह सेवा बंद हो गई। वर्तमान महापौर रामनरेश राय भी मानते हैं कि शहर की भौगोलिक स्थिति नियमित परिवहन व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी बाधा है। हाल ही में दस साल का सरकारी टेंडर पूरा हो गया और बसें मरम्मत योग्य नहीं रहीं। इस कारण अब नई बस सेवाओं के लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है।


सामाजिक सहयोग का प्रतीक

अपनापन का सहारा


करीब 85 हजार की आबादी वाले इस शहर में लोग एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। यही अपनापन यहां की लिफ्ट संस्कृति को मजबूती प्रदान करता है। हालांकि, बाहरी लोगों और नए निवासियों के लिए यह व्यवस्था कभी-कभी मुश्किलें पैदा कर सकती है, क्योंकि यहां संगठित सार्वजनिक परिवहन की सुविधा नहीं है। फिर भी, स्थानीय लोग इसे अपनी परंपरा और आपसी सहयोग का प्रतीक मानते हैं।