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जलवायु परिवर्तन का पक्षियों पर गंभीर प्रभाव: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गिरावट

हाल के शोध में पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पक्षियों की आबादी में 25-38% की गिरावट आई है। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अत्यधिक गर्मी इन पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई है। शोधकर्ताओं ने इस स्थिति से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। जानें इस गंभीर मुद्दे के बारे में और अधिक जानकारी।
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जलवायु परिवर्तन का पक्षियों पर गंभीर प्रभाव: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गिरावट

जलवायु परिवर्तन और पक्षियों की आबादी

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों ने पृथ्वी पर जीवन के संतुलन को प्रभावित किया है, विशेषकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पक्षियों की आबादी पर। हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि 1950 के बाद से, उष्णकटिबंधीय पक्षियों की संख्या में 25-38% की कमी आई है, जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अत्यधिक गर्मी है।


विश्लेषण में यह पाया गया है कि औसत तापमान और वर्षा में बदलाव का भी कुछ प्रभाव है, लेकिन उष्णकटिबंधीय पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा अत्यधिक गर्मी है। शोधकर्ताओं ने 1950 से 2020 तक 3,000 से अधिक पक्षी आबादी का अध्ययन किया और जलवायु प्रभावों को मानव गतिविधियों से अलग किया।


यह अध्ययन, जो Nature Ecology & Evolution में प्रकाशित हुआ है, पिछले 70 वर्षों में अत्यधिक गर्मी की घटनाओं में वृद्धि की पुष्टि करता है। शोधकर्ताओं ने देखा कि उष्णकटिबंधीय पक्षियों को अब पहले की तुलना में लगभग दस गुना अधिक बार खतरनाक गर्म दिनों का सामना करना पड़ रहा है।


अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि जो पक्षी इन चरम गर्मी की घटनाओं से बच जाते हैं, वे लंबे समय तक चलने वाली समस्याओं का सामना कर सकते हैं, जैसे प्रजनन में कमी, भोजन की कमी, और निर्जलीकरण।


यहां तक कि दूरस्थ उष्णकटिबंधीय वनों में भी, जो मानव गतिविधियों से अछूते हैं, गर्मी के कारण पक्षियों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव मानव दबावों से भी अधिक गंभीर हो रहे हैं।


चूंकि लगभग आधी पक्षी प्रजातियां उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं, इसलिए ये निष्कर्ष वैश्विक जैव विविधता के लिए एक गंभीर खतरा हैं। शोधकर्ताओं ने इस स्थिति से निपटने के लिए तत्काल उत्सर्जन में कटौती और आवास संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया है।