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जस्टिस सूर्यकांत बने भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश

आज जस्टिस सूर्यकांत भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। उनका जीवन संघर्ष और मेहनत का प्रतीक है, जो युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। जानें उनके कार्यकाल, महत्वपूर्ण निर्णय और न्यायपालिका में उनके योगदान के बारे में।
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जस्टिस सूर्यकांत बने भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश

भारत को मिला नया प्रधान न्यायाधीश

नई दिल्ली - आज भारत को अपना नया प्रधान न्यायाधीश मिल रहा है। जस्टिस सूर्यकांत, जो एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर देश की सर्वोच्च अदालत के शीर्ष पद तक पहुंचे हैं, आज भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। उनका जीवन संघर्ष, अनुशासन और मेहनत का एक प्रेरणादायक उदाहरण है, जो देशभर के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकता है।


हिसार से शुरू हुआ सफर

एक साधारण परिवार की कहानी
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ। उन्होंने यहीं से कानून की पढ़ाई की और वकालत की शुरुआत की। अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर वे न्यायपालिका में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून में स्नातकोत्तर में ‘प्रथम श्रेणी में प्रथम’ स्थान प्राप्त कर उन्होंने शैक्षणिक उत्कृष्टता का परिचय दिया।


कार्यकाल की अवधि

15 महीने का कार्यकाल
जस्टिस सूर्यकांत को इस वर्ष 30 अक्टूबर को अगला प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। वे इस पद पर लगभग 15 महीने तक रहेंगे और 65 वर्ष की आयु में, 9 फरवरी 2027 को रिटायर होंगे। उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। 5 अक्टूबर 2018 को उन्हें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।


महत्वपूर्ण निर्णय

कुछ प्रमुख फैसले
- जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल अनुच्छेद 370 को हटाने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकता के अधिकारों से जुड़े फैसलों के लिए जाना जाता है।
- वे उस पीठ का हिस्सा थे जिसने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों से संबंधित राष्ट्रपति के परामर्श पर हाल में सुनवाई की। इस फैसले का सभी राज्यों पर प्रभाव पड़ सकता है।
- उन्होंने औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून को स्थगित करने का आदेश दिया और सरकार को निर्देश दिया कि इसके तहत कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी।
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने निर्वाचन आयोग से बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर रखे गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण सार्वजनिक करने का भी निर्देश दिया था।