जितिया व्रत 2025: माताओं के लिए संतान की रक्षा का पर्व

जितिया व्रत का महत्व
जितिया व्रत माताओं के लिए एक विशेष पर्व है, जो अपने बच्चों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाया जाता है। यह कठिन निर्जला उपवास मां और संतान के बीच गहरे रिश्ते को दर्शाता है। इस व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और इसका समापन पारण के साथ होता है। दूसरे दिन माताएं 24 घंटे से अधिक समय तक बिना अन्न-जल के उपवास करती हैं, जो संतान की भलाई के लिए मां की तपस्या का प्रतीक है। मान्यता है कि विधिपूर्वक व्रत करने से बच्चों का जीवन संकटों से मुक्त रहता है।
जितिया व्रत की तिथि
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 14 सितंबर 2025 को सुबह 5:04 बजे से शुरू होगी और 15 सितंबर को सुबह 3:06 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, जितिया व्रत 14 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन माताएं निर्जला उपवास रखकर भगवान जीमूतवाहन की पूजा करेंगी।
पौराणिक कथाएं
जीमूतवाहन की कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, दयालु राजा जीमूतवाहन ने राजपाट छोड़कर वन में तपस्या की। एक बार उन्होंने एक नागवंशी मां को अपने बेटे को गरुड़ को बलि देते देखा। मां के दुख को देखकर जीमूतवाहन ने खुद को बलि के लिए प्रस्तुत किया। उनके साहस से प्रभावित होकर गरुड़ ने नागों को न खाने का वरदान दिया। तभी से माताएं संतान की रक्षा के लिए जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
चील और सियारिन की कथा
एक अन्य कथा में, चील और सियारिन ने जितिया व्रत रखने का निर्णय लिया। चील ने पूरी निष्ठा से निर्जला उपवास किया, जबकि सियारिन ने चोरी-छिपे खाना खा लिया। अगले जन्म में चील रानी बनी और उसे कई पुत्र मिले, लेकिन सियारिन के बच्चों की अल्पायु में मृत्यु हो गई। यह कथा व्रत की निष्ठा के महत्व को दर्शाती है।
पूजा की विधि
जितिया व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसमें माताएं गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर सात्विक भोजन करती हैं। दूसरे दिन निर्जला उपवास रखकर कुश से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा की पूजा की जाती है। इस दिन फल, फूल और पकवान चढ़ाए जाते हैं। तीसरे दिन सूर्योदय के बाद पारण होता है, जिसमें झोर, मरुवा की रोटी और नोनी का साग जैसे पकवान बनाए जाते हैं।