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झारखंड के 'दिशोम गुरु' शिबू सोरेन का निधन: हेमंत सोरेन का भावुक श्रद्धांजलि

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने उन्हें 'दिशोम गुरु' कहा और उनके संघर्षों को याद किया। शिबू सोरेन ने आदिवासी अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और झारखंड को राज्य का दर्जा दिलाने में मदद की। हेमंत सोरेन ने अपने पिता के प्रति अपनी भावनाओं को साझा करते हुए कहा कि उनका सपना अब उनका वादा है। जानें इस महान नेता के जीवन और योगदान के बारे में।
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झारखंड के 'दिशोम गुरु' शिबू सोरेन का निधन: हेमंत सोरेन का भावुक श्रद्धांजलि

शिबू सोरेन का निधन

Shibu Soren Death: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंगलवार को अपने पिता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने इसे अपने जीवन का सबसे कठिन समय बताया और कहा कि झारखंड ने एक महान आत्मा को खो दिया है।


दिशोम गुरु के रूप में पहचान

शिबू सोरेन को जनजातीय राजनीति में 'दिशोम गुरु' के नाम से जाना जाता था। वे आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एक प्रमुख नेता रहे हैं और झारखंड को राज्य का दर्जा दिलाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली।


हेमंत सोरेन का भावुक संदेश



हेमंत सोरेन के शब्दों में पिता का संघर्ष

जीवन के सबसे कठिन दिनों से गुजर रहा: हेमंत सोरेन


हेमंत सोरेन ने अपने पोस्ट में लिखा, "मैं अपने जीवन के सबसे कठिन दिनों से गुजर रहा हूं। मेरे सिर से केवल पिता का साया नहीं गया, बल्कि झारखंड की आत्मा का एक मजबूत स्तंभ हमसे छिन गया है।"


उन्होंने आगे कहा, "मैं उन्हें केवल 'बाबा' नहीं कहता था। वे मेरे विचारों की जड़ थे, मेरी प्रेरणा थे, और उस वन जैसे छांव थे जो हजारों-लाखों झारखंडवासियों को धूप और अन्याय से बचाते थे।"


पिता की संघर्षपूर्ण शुरुआत

याद की पिता की संघर्षपूर्ण शुरुआत


हेमंत सोरेन ने अपने पिता की कठिनाइयों को याद करते हुए कहा, "वे नेमरा गांव के एक छोटे से घर में पैदा हुए थे, जहां गरीबी और भूख थी, लेकिन साहस भी था। बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। जमींदारों के शोषण ने उनके भीतर वह आग भर दी, जिसने उन्हें जीवन भर का लड़ाका बना दिया।"


मुख्यमंत्री ने बताया कि उनके पिता ने हमेशा जनभावनाओं को आत्मसात कर नेतृत्व किया। उन्होंने लिखा, "मैंने उन्हें खेत जोतते हुए देखा है, लोगों के बीच बैठते हुए देखा है। वे केवल भाषण नहीं देते थे, बल्कि जनता के दुख-दर्द को जीते थे।"


दिशोम गुरु की उपाधि

क्यों कहे जाते थे 'दिशोम गुरु'?


हेमंत ने साझा किया, "जब मैंने बचपन में उनसे पूछा कि लोग आपको दिशोम गुरु क्यों कहते हैं, तो वह मुस्कुरा कर कहते थे 'क्योंकि बेटा, मैंने केवल उनके दर्द को समझा और उनकी लड़ाई को अपनी बना लिया।'" उन्होंने बताया, "'दिशोम' का अर्थ होता है समाज, और 'गुरु' का अर्थ होता है राह दिखाने वाला। यह उपाधि उन्हें न तो किसी किताब ने दी, न संसद ने, बल्कि झारखंड की जनता के दिलों से आई थी।"


अन्याय के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा

अन्याय के खिलाफ खड़े होने से कभी नहीं डरे


हेमंत सोरेन ने कहा कि उनके पिता अन्याय के विरुद्ध कभी झुके नहीं। उन्होंने लिखा, "मैं डरता था, लेकिन बाबा कभी नहीं डरे। वे कहते थे 'अगर अन्याय के खिलाफ खड़े होना अपराध है, तो मैं बार-बार अपराधी बनूंगा।'" उन्होंने आगे कहा, "बाबा के संघर्ष को कोई किताब समझा नहीं सकती। वह उनके पसीने, उनकी आवाज और उनकी चप्पलों से ढके फटे पैरों में था।"


राज्य बनने के बाद का दृष्टिकोण

सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि राज्य बनने के बाद भी उनके पिता ने सत्ता को कभी उपलब्धि नहीं माना। उन्होंने लिखा, "जब झारखंड राज्य बना, उनका सपना पूरा हुआ, लेकिन उन्होंने कभी इसे सत्ता का सिंहासन नहीं माना। वे कहते थे 'यह राज्य मेरे लिए सत्ता नहीं, मेरी जनता की पहचान है।'"


हेमंत सोरेन का वादा

'आपका सपना अब मेरा वादा है'


अपने श्रद्धांजलि संदेश का समापन करते हुए हेमंत ने कहा, "जो सपना आपने देखा, वह अब मेरा वादा है। मैं झारखंड को झुकने नहीं दूंगा, आपके नाम को मिटने नहीं दूंगा। आपका संघर्ष अधूरा नहीं रहेगा। बाबा, अब आप विश्राम करें। आपने अपना कर्तव्य निभा दिया। अब हमें आपके कदमों पर चलना है। झारखंड हमेशा आपका ऋणी रहेगा। मैं, आपका बेटा, आपका वादा निभाऊंगा।"