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झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन का निधन

झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन का निधन हो गया। वे पिछले एक महीने से दिल्ली के अस्पताल में उपचाराधीन थे। शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और झारखंड अलग राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया। उनके योगदान और विरासत के बारे में जानें।
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झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन का निधन

शिबू सोरेन का निधन

रांची। झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। वे पिछले एक महीने से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में इलाज करा रहे थे, जहां उनकी स्थिति पर डॉक्टरों की एक टीम नजर रख रही थी।


राजनीतिक यात्रा का संक्षिप्त अवलोकन

सोमवार सुबह, शिबू सोरेन के बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन की सूचना सोशल मीडिया पर साझा की। आइए, शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा पर एक नजर डालते हैं।


शिबू सोरेन को ‘दिशोम गुरु’ के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ (तत्कालीन हजारीबाग) जिले के नेमरा गांव में हुआ। उनके पिता सोबरन मांझी की 1957 में हत्या ने उनके जीवन को बदल दिया, जिसके बाद उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेना शुरू किया। 1970 के दशक में, उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की स्थापना की और सूदखोरी, शराबबंदी, और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया।


सांसदीय करियर

शिबू सोरेन 1971 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव बने। उन्होंने 1977 में दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। 1980 में, वे पहली बार सांसद बने और इसके बाद 1989, 1991, 1996, और 2002 में भी दुमका से सांसद रहे। इसके अलावा, उन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने झारखंड अलग राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया, जो 2000 में सफल हुआ।


मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल

शिबू सोरेन तीन बार (2005, 2008-09, 2009-10) झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 2004 में, वे यूपीए सरकार में कोयला मंत्री बने, लेकिन चिरूडीह कांड और शशि नाथ झा हत्या मामले में विवादों के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।


विरासत

1993 के सांसद घूसकांड में भी उनका नाम आया, लेकिन कोर्ट ने उन्हें राहत दी। उनकी ‘लक्ष्मीनिया जीप’ आंदोलन के दिनों की प्रतीक रही। उनके बेटे हेमंत सोरेन और परिवार के अन्य सदस्य भी जेएमएम के माध्यम से उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।