डॉ. अशोक कुमार मित्तल ने किफायती आवास पर महंगाई के प्रभाव पर उठाए सवाल

चंडीगढ़ समाचार
आज मानसून सत्र के दौरान, डॉ. मित्तल ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न के माध्यम से आवासीय क्षेत्र से जुड़े मुद्दे उठाए। उन्होंने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री से चार सीधे सवाल पूछे, जिनमें यह जानने की कोशिश की गई कि कैसे बढ़ती घरों की कीमतें किफायती आवास को खरीदारों और बिल्डरों दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण बना रही हैं।
डॉ. मित्तल ने चार प्रमुख सवाल पूछे: पहले, घर की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं? दूसरे, ब्याज दरों में कमी का किफायती आवास पर क्या असर पड़ा? तीसरे, बिल्डर किफायती प्रोजेक्ट्स से क्यों पीछे हट रहे हैं? और चौथे, ज़मीन की लागत कम करने और पहली बार घर खरीदने वालों की सहायता के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
इन सवालों के जवाब में, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री श्री मनोहर लाल ने कहा कि सरकार के पास घरों की कीमतों या किराए के ट्रेंड का कोई डेटा नहीं है। हालांकि, उन्होंने बताया कि किफायती आवास देशभर में एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि 2018 से अब तक हाउसिंग प्राइस इंडेक्स हर साल औसतन 5.3% बढ़ा है, लेकिन टैक्स छूट और कम जीएसटी जैसी कई महत्वपूर्ण छूटें 2022 में समाप्त हो गईं।
किफायती आवास के महत्व पर जोर देते हुए, डॉ. मित्तल ने कहा, "हर मध्यम वर्गीय और कम आय वाले परिवार के लिए अपना घर केवल एक सपना नहीं, बल्कि समृद्धि और सम्मान का प्रतीक है। इसलिए, एक नीति-निर्माता के रूप में मेरी कोशिश है कि सस्ते आवास से संबंधित नीतियां आम आदमी की इसी उम्मीद को सही मायनों में दर्शाएं।"
मानसून सत्र की शुरुआत से, डॉ. मित्तल ने आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े मुद्दों को लगातार उठाया है। उन्होंने छोटे निर्यातकों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर भी चिंता जताई और उनकी भलाई के लिए सोच-समझकर बदलाव की मांग की।
इससे पहले, डॉ. मित्तल ने सड़क परिवहन मंत्रालय से हाईवे पर एंबुलेंस की रिस्पॉन्स टाइम के बारे में जानकारी मांगी थी। इसके अलावा, उन्होंने सत्र की शुरुआत में विमानन सुरक्षा को लेकर भी चिंता जताई थी और सरकार से सवाल पूछे थे।
डॉ. मित्तल ने जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा, "सांसद होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि हम आम आदमी और कामकाजी परिवारों की आवाज़ बनें, क्योंकि इनके सपने एक विकसित भारत की नींव हैं। संसद को इसी तरह की बुनियादी खामियों पर गंभीर बहस कर समाधान निकालना चाहिए।"