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दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता संकट: गाजियाबाद सबसे प्रदूषित शहर

दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में वायु गुणवत्ता का संकट हर साल बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष गाजियाबाद को सबसे प्रदूषित शहर के रूप में पहचाना गया है, जबकि दिल्ली की स्थिति भी चिंताजनक है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पराली जलाने का प्रभाव कम हुआ है, लेकिन अन्य स्रोतों से प्रदूषण में वृद्धि जारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्थायी उपायों की आवश्यकता है, अन्यथा वायु गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं है।
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दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता संकट: गाजियाबाद सबसे प्रदूषित शहर

वायु गुणवत्ता की गंभीर स्थिति


नई दिल्ली: दिल्ली और उसके आस-पास के एनसीआर क्षेत्र में वायु गुणवत्ता का संकट हर साल एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। इस वर्ष नवंबर में गाजियाबाद को सबसे प्रदूषित शहर के रूप में पहचाना गया। रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है कि पराली जलाने का प्रभाव कम हुआ है, फिर भी शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण में वृद्धि देखी गई है।


गाजियाबाद की प्रदूषण स्थिति

गाजियाबाद में नवंबर में पीएम 2.5 का मासिक औसत 224 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। पूरे महीने शहर की वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों से ऊपर रही। नोएडा, बहादुरगढ़, दिल्ली, हापुड़, ग्रेटर नोएडा, बागपत, सोनीपत, मेरठ और रोहतक भी शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में शामिल रहे। इनमें से छह शहर उत्तर प्रदेश के, तीन हरियाणा के और दिल्ली चौथे स्थान पर रही।


दिल्ली की वायु गुणवत्ता और पराली जलाने का प्रभाव

दिल्ली में पीएम 2.5 का मासिक औसत 215 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। यहां 23 दिन बहुत खराब, छह दिन गंभीर और एक दिन खराब दर्ज किया गया। इस वर्ष पराली जलाने का योगदान केवल 7 प्रतिशत रहा, जबकि पिछले वर्ष यह 20 प्रतिशत था। सीआरईए के अनुसार, औसतन पराली का प्रभाव 22 प्रतिशत रहा, जो पिछले वर्ष 38 प्रतिशत था।


प्रदूषण के मुख्य स्रोत

विश्लेषकों का मानना है कि परिवहन, उद्योग, बिजली संयंत्र और अन्य दहन स्रोत जैसे स्थायी स्रोत प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। एनसीआर के 29 शहरों में से 20 में पीएम 2.5 का स्तर पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि क्षेत्र विशेष उत्सर्जन में कमी नहीं की गई, तो वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों के भीतर नहीं आएगी।


राज्य स्तर पर प्रदूषण की स्थिति

राजस्थान में 34 में से 23 शहरों में प्रदूषण उच्च स्तर पर था। हरियाणा के 25 में से 22 शहर, उत्तर प्रदेश के 20 में से 14 और मध्य प्रदेश के 12 में से 9 शहरों में प्रदूषण सीमा से अधिक दर्ज किया गया। ओडिशा और पंजाब के कई शहरों में भी हवा की गुणवत्ता खराब रही। यह दर्शाता है कि समस्या केवल पराली जलाने तक सीमित नहीं है।


स्थायी समाधान की आवश्यकता

विशेषज्ञों का सुझाव है कि केवल मौसमी उपाय पर्याप्त नहीं हैं। उद्योगों और परिवहन के प्रदूषण पर नियंत्रण, बिजली संयंत्रों का बेहतर प्रबंधन और सतत पर्यावरण नीति ही हवा की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है। नागरिकों और प्रशासन को मिलकर गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।