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दिल्ली दंगों के मामले में उमर खालिद और अन्य की जमानत याचिकाएं खारिज

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2020 के दंगों से जुड़े मामले में उमर खालिद और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं। अदालत ने कहा कि यह मामला गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है। सुनवाई के दौरान अभियोजन ने आरोप लगाया कि दंगे एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा थे। आरोपियों ने अपनी दलील में कहा कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और अदालत के निर्णय के पीछे के तर्क।
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दिल्ली दंगों के मामले में उमर खालिद और अन्य की जमानत याचिकाएं खारिज

दिल्ली दंगों का मामला

दिल्ली दंगों का मामला: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2020 में हुए दिल्ली दंगों से संबंधित एक महत्वपूर्ण मामले में कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाएं मंगलवार को अस्वीकार कर दीं। यह निर्णय न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की पीठ ने सुनाया।


जमानत याचिकाएं खारिज

जिनकी जमानत याचिकाएं खारिज हुईं

अन्य आरोपियों में मोहम्मद सलीम खान, शिफा-उर-रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, शादाब अहमद, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा शामिल हैं। शरजील इमाम और उमर खालिद की याचिकाएं 2022 से लंबित थीं।


आरोपों का विवरण

क्या हैं आरोप?

इन सभी पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा की साजिश रचने का आरोप है। इस हिंसा में 50 से अधिक लोगों की जान गई और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को हिंसा का मास्टरमाइंड मानते हुए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम UAPA के तहत आरोप लगाए हैं।


अभियोजन का पक्ष

अभियोजन का पक्ष

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये दंगे एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा थे, जिसका उद्देश्य देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करना था। उन्होंने अदालत में कहा कि यदि कोई अपने देश के खिलाफ कुछ करता है, तो उसे तब तक जेल में रहना चाहिए जब तक कि अदालत उसे दोषमुक्त नहीं करती।


आरोपियों की दलील

आरोपियों की दलील

उमर खालिद ने तर्क दिया कि केवल व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल होना अपराध नहीं है। उन्होंने कहा कि उनके पास से कोई आपत्तिजनक सामग्री या धनराशि नहीं मिली है। उनका कहना था कि जांच एजेंसियां आरोप तो लगा रही हैं, लेकिन उनके खिलाफ ठोस सबूत नहीं पेश कर सकीं। शरजील इमाम ने भी खुद को अन्य आरोपियों से अलग बताते हुए कहा कि उन्होंने किसी भी प्रकार के दंगे या हिंसा का समर्थन नहीं किया।


लंबी हिरासत

चार साल से अधिक समय से हिरासत में

सभी आरोपियों ने यह भी कहा कि वे चार साल से अधिक समय से हिरासत में हैं और मुकदमे की धीमी प्रक्रिया के कारण उन्हें लंबी सजा भुगतनी पड़ रही है। उन्होंने अदालत से जमानत देने की अपील की थी।


अदालत का निर्णय

अदालत का फैसला

हालांकि, अदालत ने अभियोजन के तर्कों से सहमति जताते हुए कहा कि इस मामले में जमानत नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया आरोप गंभीर हैं और जांच प्रभावित हो सकती है।