दिल्ली में क्लाउड सीडिंग प्रयोग: ₹34 करोड़ की लागत पर निराशाजनक परिणाम
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग
नई दिल्ली: दिल्ली की ठंडी हवाओं में राहत लाने की कोशिश एक बार फिर विफल रही है। ₹34 करोड़ की लागत से किए गए क्लाउड सीडिंग प्रयोग ने न तो बारिश लाने में सफलता पाई और न ही प्रदूषण में कमी आई।
विशेषज्ञों की चेतावनियों की अनदेखी
यह जानकर आश्चर्य होता है कि इस प्रयोग को तब मंजूरी दी गई जब तीन प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों CAQM, CPCB और IMD ने पहले ही स्पष्ट रूप से कहा था कि दिल्ली में सर्दियों में क्लाउड सीडिंग संभव नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि किसने इन विशेषज्ञों की सलाह को नजरअंदाज किया?
क्लाउड सीडिंग के खिलाफ वैज्ञानिक राय
पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर 2024 में राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि तीनों एजेंसियों ने क्लाउड सीडिंग के खिलाफ राय दी थी। उनका कहना था कि दिल्ली की सर्दियों में बादलों में नमी बहुत कम होती है, और जब पश्चिमी विक्षोभ बादल लाते हैं, तो वे या तो बहुत ऊंचे होते हैं या सूखे। ऐसे में सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों का छिड़काव करने से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिलता। मंत्रालय ने यह भी कहा कि ऐसे प्रयोग पर्यावरण के लिए खतरनाक हो सकते हैं।
दिल्ली सरकार का क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट
इसके बावजूद, दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर के सहयोग से ₹34 करोड़ का क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट शुरू किया। संस्थान के निदेशक ने पुष्टि की कि 28 अक्टूबर को दो बार हवाई उड़ानें भरी गईं, जिसमें लगभग 300 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कवर किया गया। हर उड़ान पर लगभग ₹60 लाख खर्च हुए, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहे, केवल कुछ मिलीमीटर की बारिश हुई, जो सीमित क्षेत्रों में थी।
वायुमंडलीय नमी की कमी
IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि उस दिन वायुमंडलीय नमी 10 से 15 प्रतिशत के बीच थी, जो क्लाउड सीडिंग के लिए अपर्याप्त थी। यही परिस्थितियां थीं, जिनकी चेतावनी एक साल पहले IMD और CAQM ने दी थी। वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसे वातावरण में रसायनों का छिड़काव करने से बारिश की कोई संभावना नहीं थी, फिर भी प्रयोग किया गया।
निर्णय की मंजूरी किसने दी?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस निर्णय को किसने मंजूरी दी? क्या विशेषज्ञों की चेतावनियों को अनदेखा किया गया? क्या ₹34 करोड़ खर्च करने से पहले कोई नई समीक्षा की गई थी? दिल्ली सरकार ने केवल इतना कहा कि यह 'अभी प्रायोगिक चरण' में है। पर्यावरण मंत्री की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जबकि उनके कार्यालय ने कहा कि 'विभिन्न प्रकार की क्लाउड सीडिंग होती है,' और विशेषज्ञ राय किस श्रेणी के लिए ली गई थी, यह स्पष्ट नहीं है।
क्लाउड सीडिंग के पिछले प्रयास
दिल्ली में यह पहली बार नहीं है जब क्लाउड सीडिंग का प्रयास किया गया है। इससे पहले भी कई प्रयोग हुए हैं, लेकिन किसी ने भी बारिश नहीं करवाई। वैज्ञानिक लगातार कहते रहे हैं कि दिल्ली का मौसम इस तकनीक के लिए अनुकूल नहीं है। फिर भी, 'बारिश से प्रदूषण खत्म करने' का विचार बार-बार प्रयोगशालाओं से निकलकर राजनीति के मंच तक पहुंच जाता है। अब जबकि करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं और परिणाम शून्य हैं, असली सवाल यही है- आखिर किसने विज्ञान को नजरअंदाज किया, और क्यों?
