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दीपेंद्र हुड्डा ने ऑपरेशन सिंदूर पर उठाए सवाल, सरकार की नीतियों पर कसा तंज

कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने सीजफायर की शर्तों और विदेश मंत्री की भूमिका पर चिंता व्यक्त की। हुड्डा ने कहा कि जब हमारी सेना पाकिस्तान पर हावी थी, तब अचानक सीजफायर की घोषणा कर दी गई, जिससे देश की सुरक्षा पर सवाल उठता है। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के बयान का भी जिक्र किया और सरकार से स्पष्टता की मांग की।
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दीपेंद्र हुड्डा ने ऑपरेशन सिंदूर पर उठाए सवाल, सरकार की नीतियों पर कसा तंज

लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस

नई दिल्ली। लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा चल रही है। कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने इस दौरान कहा कि आज यह सवाल उठता है कि हमारी सेना ने अपनी जिम्मेदारी निभाई, लेकिन क्या सत्ता में बैठे लोगों ने अपनी भूमिका सही तरीके से निभाई? लोकतंत्र में यदि सत्ताधारी पक्ष चूक करता है, तो विपक्ष की जिम्मेदारी बनती है कि इसे जनता के सामने लाए। जब पहलगाम में आतंकी हमले के बाद सर्वदलीय बैठक बुलाई गई, तो प्रधानमंत्री उसमें शामिल नहीं हुए। यदि वे दिन में व्यस्त थे, तो रात में बैठक का आयोजन किया जा सकता था। इस बैठक में सभी विपक्षी नेता शामिल होते और यह संदेश जाता कि हम एकजुट हैं। लेकिन आपने इस अवसर को खो दिया।


उन्होंने आगे कहा, 'ऑपरेशन सिंदूर' में हमारी सेना ने अद्भुत साहस दिखाया, लेकिन जब हम पाकिस्तान पर हावी थे, तब सीजफायर की घोषणा कर दी गई। देश चाहता था कि पाकिस्तान को उसी तरह का जवाब दिया जाए जैसा 1971 में इंदिरा गांधी ने दिया था। जब पाकिस्तान कमजोर था, तब अमेरिका से आए एक ट्वीट ने युद्धविराम की घोषणा कर दी। ऐसे में आपको देश को बताना चाहिए कि सीजफायर की शर्तें क्या थीं। इसके अलावा, विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को फोन कर कहा कि हम केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाएंगे, जिससे पाकिस्तान की सेना और सरकार को क्लीन चिट मिल गई।


दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने 28 बार कहा कि उन्होंने व्यापार की धमकी देकर सीजफायर करवाया। ट्रंप ने भारत के जहाज गिरने और कश्मीर मुद्दे का भी जिक्र किया, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी बातों का खंडन नहीं किया। अमेरिका भारत के साथ पाकिस्तान की बराबरी नहीं कर सकता। इसलिए सरकार को एक रास्ता चुनना होगा- या तो हाथ मिलाना या आंख दिखाना। सरकार को या तो ट्रंप को जवाब देना चाहिए या फिर भारत में अमेरिका के मैकडॉनल्ड्स को बंद करवाना चाहिए। ये दोनों बातें एक साथ नहीं चल सकतीं।


उन्होंने यह भी कहा कि विदेश मंत्री का काम स्कूल, कॉलेज या सड़कें बनाना नहीं, बल्कि दुनिया में मित्र देशों की संख्या बढ़ाना होता है। मोदी सरकार की 11 साल की विदेश नीति की सच्चाई तब सामने आई जब पाकिस्तान के साथ तनाव की स्थिति बनी। कितने देश आपके साथ खड़े हुए? एक भी देश का नाम बताएं जिसने आतंकी हमले की निंदा की? दूसरी ओर, पाकिस्तान के साथ चीन, तुर्की, अजरबैजान, मलेशिया जैसे देश खड़े हो गए, लेकिन आपके साथ कोई नहीं दिखा। यहां तक कि बहुराष्ट्रीय संस्थाओं ने उस एक महीने में जिस तरह से पाकिस्तान का समर्थन किया, उसे रोकने में मोदी सरकार असफल रही।