नए भारत की डिजिटल पहचान: स्क्रीन पर जीवन का नया अध्याय

डिजिटल युग में जीवन की नई वास्तविकता
एक झुलसाती दोपहर में, कुछ युवा लड़के और महिलाएं फुटपाथ पर खड़े थे, उनके पास खाली डिब्बे और प्लास्टिक की बोतलें थीं। वे पानी के टैंकर का इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन उनकी चुप्पी और मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहने की आदत ने एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी थी।
गाड़ी में बैठे-बैठे मैंने बुदबुदाया, "पानी और नौकरी की कमी है, लेकिन फोन तो है!"
आशीष ने कहा, "यह नए भारत का तकनीकी उदय है।"
भारत में लोग अब औसतन पांच घंटे मोबाइल पर बिताते हैं, जिसमें सोशल मीडिया, गेमिंग और वीडियो स्ट्रीमिंग शामिल हैं। अब बच्चों का सपना सरकारी नौकरी नहीं, बल्कि वायरल होना है।
आजकल, सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा व्लॉग बनाते हैं, जैसे वे किसी प्रेरक डॉक्यूमेंट्री के नायक हों।
यह केवल युवाओं की बात नहीं है; दादी-नानी भी इंस्टाग्राम पर 'वेलनेस इन्फ्लुएंसर' बन गई हैं।
हर रील एक नई आस्था का प्रतीक है।
अब हर कोई आधा समय ऑनलाइन जी रहा है।
समाज चिंतित है कि संस्कार कहाँ गए? लेकिन क्या बूढ़े भी फोन में खोए नहीं हैं?
संस्कार नहीं गए, बल्कि उन्हें स्क्रीन और रील्स ने बदल दिया है।
सोशल मीडिया ने हमारे जीवन को एक नया मोड़ दिया है।
2014 तक, भारतीय राजनीति भी स्क्रीन में बदल गई थी।
अब नेता पत्रकार नहीं, बल्कि कंटेंट क्रिएटर्स की तलाश कर रहे हैं।
जानकारी अब पत्रकारिता का अंत बन गई है।
आज का भारत कलाकारों का देश है, जहां महत्वाकांक्षा अब रिफ्रेश होती है।
इस डिजिटल शोर में, एक चुपचाप होती क्षरण महसूस होती है।
जब फीड शांत हो जाएगी और स्क्रीन बुझ जाएगी, तब हम क्या करेंगे?