निर्वाचन आयोग की बैठक: विपक्ष का भरोसा कैसे बढ़ाएं?

निर्वाचन आयोग की बैठक में विपक्षी विश्वास का मुद्दा
देशभर में एसआईआर से जुड़ी निर्वाचन आयोग की बैठक में यह विचार करना आवश्यक है कि विपक्षी दलों का भरोसा क्यों घट रहा है। क्यों कुछ मतदाता कथित वोट चोरी के आरोपों पर विश्वास करने लगे हैं?
बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाद का मुख्य कारण भरोसे की कमी है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को इस प्रक्रिया में विश्वास स्थापित करने के लिए कई निर्देश दिए, जिनमें आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में मान्यता देना और जिनके नाम हटाए गए हैं, उनकी सूची जारी करना शामिल है, जिसमें नाम हटाने का कारण भी स्पष्ट किया जाए। सुनवाई के दौरान, आयोग को यह आश्वासन देना पड़ा कि समयसीमा समाप्त होने के बाद भी वह दावों और आपत्तियों पर विचार करेगा। अब जब आयोग पूरे देश में एसआईआर शुरू करने जा रहा है, तो उसे सर्वोच्च न्यायालय के बिहार से संबंधित आदेशों और टिप्पणियों को ध्यान में रखना चाहिए।
आयोग ने एसआईआर की तैयारी के लिए बुधवार को राज्यों के निर्वाचन अधिकारियों की बैठक बुलाई है। यदि आयोग वास्तव में विश्वास की खाई को पाटने में रुचि रखता है, तो इस बैठक में यह विचार होना चाहिए कि विपक्षी दलों में अविश्वास क्यों बढ़ रहा है और क्यों जनमत का एक बड़ा हिस्सा कथित वोट चोरी के आरोपों पर विश्वास कर रहा है? इस स्थिति के लिए आयोग कितनी हद तक जिम्मेदार है, इस पर उसे आत्म-निरीक्षण करना चाहिए।
हाल ही में कर्नाटक की अलांद विधानसभा सीट पर विवाद उठ खड़ा हुआ है, जहां कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि मतदाताओं के नाम जानबूझकर और संगठित तरीके से हटाए गए हैं। राज्य सरकार ने इसकी जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन आरोप है कि निर्वाचन आयोग सहयोग नहीं कर रहा है और मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध नहीं करवा रहा है। यदि आरोप निराधार हैं, तो पारदर्शिता बरतने में क्या समस्या है? आयोग को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय जनमत का एक बड़ा हिस्सा चुनावों की निष्पक्षता पर संदेह कर रहा है। क्या राष्ट्रव्यापी एसआईआर के दौरान इस समस्या का समाधान किया जाएगा?