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नेपाल का आंदोलन: दक्षिण एशिया में युवा विद्रोह की लहर

नेपाल में उठ रहे युवा विद्रोह ने न केवल स्थानीय बल्कि दक्षिण एशिया में भी हलचल मचा दी है। इस आंदोलन के पीछे बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और असमानता जैसे मुद्दे हैं। युवा पीढ़ी अब बदलाव की मांग कर रही है, जो कि एक नई वैश्विक संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। जानें कैसे यह आंदोलन काठमांडू से लेकर कोलंबो और ढाका तक फैल रहा है और इसके पीछे की जड़ें क्या हैं।
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नेपाल का आंदोलन: दक्षिण एशिया में युवा विद्रोह की लहर

नेपाल से उठता धुआँ

नेपाल में उठ रहे धुएँ ने भारत के सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है। बुधवार की सुबह से जेन-जेड का नैरेटिव चर्चा का विषय बन गया है। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि भारत के युवा नेपाल से भिन्न हैं। भले ही उन्हें बेरोज़गारी और अमीरी-गरीबी की खाई परेशान करती हो, लेकिन उनकी रुचि भक्ति और तमाशे में अधिक है। क्या यह सच है? क्या भारत की जेन-जेड और उससे ऊपर की पीढ़ी को नौकरी की आवश्यकता नहीं है? वही नौकरी, वही अवसर जो काठमांडू के किशोरों, ढाका के पहले वोट डालने वाले युवाओं और कोलंबो के निराश ग्रेजुएट्स को चाहिए। रोज़मर्रा का भ्रष्टाचार, अधिकारियों की मनमानी और नेताओं की खोखली राष्ट्रवादी घोषणाएँ क्या भारत के युवाओं को भी उतनी ही परेशान नहीं करतीं जितनी श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के युवाओं को?


युवाओं का गुस्सा

इतिहास बताता है कि जब गुस्सा फूटता है, तो युवा सबसे पहले सड़कों पर उतरते हैं। यह अरब देशों में भी देखा गया है और दक्षिण एशिया में भी। भारत में 1975 की संपूर्ण क्रांति और 2011 के अन्ना आंदोलन में युवाओं की भीड़ ने सत्ता के गलियारों को हिला दिया था। भारत की जेन-जेड भी रोजगार के संकट से परेशान है। सीएमआईई के हालिया आंकड़ों के अनुसार, 20-24 साल के युवाओं में बेरोज़गारी दर 40 प्रतिशत से अधिक है। हर साल लाखों डिग्रीधारी युवा नौकरी की तलाश में हैं, लेकिन उन्हें स्थायी नौकरी नहीं, बल्कि अस्थायी गिग-वर्क या कोचिंग-प्रवेश परीक्षाओं का अंतहीन चक्कर मिलता है। दक्षिण एशिया का साझा सच यही है: यह युवा उपमहाद्वीप है, जहाँ जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और अवसर घटते जा रहे हैं।


भाषणों का असर

इसलिए असल मुद्दा यह है कि भाषणों से पेट नहीं भरता। यदि राष्ट्रवाद शिक्षा और रोजगार नहीं दे सकता, तो युवाओं का दिमाग खदबदाएगा। फर्क यह है कि इस सदी की शुरुआत का अरब स्प्रिंग इंटरनेट के मासूम दौर में हुआ था—जब उम्मीदें ऊँची थीं और डिजिटल प्लेटफॉर्म आज़ादी के औज़ार लगते थे। आज का विद्रोह डिजिटल मोहभंग के बाद का है। अब एल्गोरिद्म हथियार बन चुके हैं। युवा आंदोलन भोली उम्मीदों से नहीं, बल्कि धोखे के अनुभव से जन्म ले रहे हैं।


काठमांडू में विद्रोह

काठमांडू में विद्रोह की गंध है—जानी-पहचानी, फिर भी बिल्कुल नई। बीते दो दिनों में काठमांडू में जो घटा, वह किसी एक देश का नहीं, बल्कि वैश्विक लगा। अलग झंडे, अलग चेहरे, लेकिन गुस्से का वही मूड। सड़क पर जले हुए टायर और हर टूटी बैरिकेड के नीचे एक ही सच दबा पड़ा है—सत्ता के किए गए वादे झूठे थे। "हर कोई अमीर होगा एक अमीर होते देश में"—यह सपना बस एक सपना रह गया।


दक्षिण एशिया में समानता

नेपाल की आग अकेली नहीं है। यह उपमहाद्वीप में धधकती धीमी आग का हिस्सा है। 2022 में कोलंबो में जब जनता ने राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा कर राजपक्षे भाइयों को खदेड़ा, तब भी वही आग थी। पिछले साल ढाका में जब बेरोज़गार युवाओं ने शेख हसीना की लंबी सत्ता को उखाड़ फेंका, तब भी वही आग थी। पाकिस्तान में भी यही बेचैनी सुलगती रही। इमरान खान के पीछे खड़े युवा, इन्फ्लुएंसर और फ़ुट-सोल्ज़र्स सिर्फ़ इसलिए नहीं जुटे कि वह कौन थे, बल्कि इसलिए कि वह क्या दर्शाते थे—विरोध और प्रतिरोध का प्रतीक।


युवाओं का प्रभाव

जब युवा उठ खड़े होते हैं, इतिहास नोट लेने बैठ जाता है। वे भले विकल्प न बनें, पर उथल-पुथल कर जाते हैं। सत्ता के लिए ख़तरा बन जाते हैं। यह नया भी नहीं है। दिसंबर 2010 में ट्यूनीशिया के मोहम्मद बुआज़ीज़ी ने खुद को आग लगा ली थी और उस एक चिंगारी ने पूरे अरब जगत को जला दिया। काहिरा का तहरीर चौक प्रतीक बन गया—सिर्फ़ एक तानाशाह के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि दशकों से छीने गए भविष्य और सत्ता के धोखे के ख़िलाफ़।


आंदोलन की जड़ें

इस विद्रोह के मूल में वही पीढ़ी है जिसे सपनों के साथ जीने की शिक्षा दी गई थी, लेकिन सपना देने वाली नई सत्ता ने भी अवसर से ज्यादा वंचित किया। नेपाल में 2024 में बेरोज़गारी 12.6 प्रतिशत थी। बांग्लादेश में सितंबर तक 26 लाख से अधिक लोग काम ढूँढ रहे थे। श्रीलंका के 2022 के आंदोलन की जड़ें पेट्रोल-पानी की कमी से शुरू होकर बेरोज़गार और कमज़ोर युवाओं की हताशा में बदली थीं। उनके माता-पिता ने उदारीकरण के दौर में बाज़ार खुलते और नौकरियों को बढ़ते देखा था, जबकि इस पीढ़ी को डिग्रियाँ मिलीं मगर नौकरियाँ नहीं।


नया विद्रोह

यह इतिहास की पुनरावृत्ति भर नहीं है। यह तेज़तर्रार और बेतरतीब विस्फोटक है। अब आंदोलन किसी नेता या पार्टी का इंतज़ार नहीं करते। वे अचानक फूट पड़ते हैं—कभी इंस्टाग्राम ब्लैकआउट से, तो कभी सड़कों पर उमड़े जनसैलाब से। वे बग़ैर नाम के हैं, मगर खोए हुए नहीं; बग़ैर योजना के हैं, मगर बेतुके नहीं। यह विद्रोह अब एक मूड है—फुर्तीला, ग़ुस्सैल और नेता की बकवास से नफ़रत करने वाला। नेपाल में हैरानी की बात यह है कि वामपंथी-कम्युनिस्ट सरकार की छत्रछाया में पली जेन-जेड ने नेताओं की मनमानी और भ्रष्टाचार को सोशल मीडिया से घर-घर पहुंचाया। इसे जानते हुए भी कम्युनिस्ट नेताओं ने सुधरने, सत्ता व्यवहार बदलने के बजाय उसे दबाने की कोशिश की।


विद्रोह का स्वरूप

जाहिर है जब यह पीढ़ी उठती है तो हाशिये पर नहीं जाती, राजधानी पर धावा बोलती है—कोलंबो, ढाका, काठमांडू या काहिरा। विद्रोह हमेशा उन्हीं महानगरों में फूटता है जहाँ संपन्नता और असमानता आमने-सामने खड़ी होती है। यही शहर मंच बनते हैं, यही गलियाँ रंगमंच बन जाती हैं। यह सिर्फ़ विरोध नहीं, ग़ुस्से का थिएटर है—जिसे पूरी दुनिया बालकनी से देखती है।


वैश्वीकरण का प्रभाव

वैश्वीकरण ने साझा सपने का वादा किया था—गतिशीलता, योग्यता, आधुनिकता का। जो बचा है, वह साझा दर्द है। आज हम सिर्फ़ नौकरियों या शासन का संकट नहीं देख रहे, बल्कि मोहभंग की एक वैश्विक संस्कृति देख रहे हैं। यह माहौल विचारधारा से नहीं, तस्वीरों से फैलता है। काठमांडू की लाइवस्ट्रीम ब्रुकलिन में गूंजती है। ढाका का मुखौटा पहने प्रदर्शनकारी लंदन के कॉलेज स्टूडेंट जैसा दिखता है। क्योंकि धोखा भी वैश्विक था और अब मोहभंग भी वैश्विक है।


नया सवाल

यह नकल नहीं है, यह गूंज है। और यह राजनीति से तेज़ फैलती है। एक लैपटॉप और टूटी स्क्रीन वाला फ़ोन अब किसी पार्टी दफ़्तर से ज़्यादा ताक़तवर है। राजनीति ने आधुनिकता को प्रोपेगेंडा का हथियार बनाया था, अब युवा उसी औज़ार से सवाल पूछ रहा है: तुमने जो वादे किए थे, कहाँ गए?


एक पीढ़ी का फ़ैसला

काठमांडू का आंदोलन सिर्फ़ एक और आंदोलन नहीं है। यह एक पीढ़ी का फ़ैसला है—जो पूरे दक्षिण एशिया में फैल रहा है, एक विद्रोह से दूसरे तक। क्योंकि जब युवा इंतज़ार छोड़ देते हैं, तो वे सिर्फ़ बदलाव की माँग नहीं करते, वे ख़ुद बदलाव बन जाते हैं। सत्ता से चिपके मज़बूत नेताओं के असली विकल्प यही बनते-बनाते हैं।