नेपाल में Gen-Z आंदोलन: ओली की वापसी और राजनीतिक संकट

नेपाल की राजनीति में बदलाव
8 सितंबर को शुरू हुए Gen-Z विरोध प्रदर्शनों ने नेपाल की राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया। इन प्रदर्शनों की तीव्रता इतनी बढ़ गई कि तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को 9 सितंबर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इन प्रदर्शनों में 74 लोगों की जान गई, जिसके बाद नेपाल में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ। अब ओली फिर से सक्रिय हो गए हैं और अपने समर्थकों के बीच युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
ओली की राजनीतिक वापसी
इस्तीफे के बाद, केपी शर्मा ओली काफी समय तक जनता से दूर रहे। उन्हें पहले सेना की सुरक्षा में रखा गया और फिर एक अस्थायी निवास में भेजा गया। शनिवार को, उन्होंने पार्टी के छात्र संगठन, राष्ट्रीय युवा संघ के कार्यक्रम में भक्तपुर में भाग लिया। यह उनकी राजनीतिक वापसी का संकेत माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्तमान सरकार जनता की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती, बल्कि 'आगजनी और हिंसा' के माध्यम से बनी है।
Gen-Z आंदोलन का कारण
भ्रष्टाचार, पारदर्शिता और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों से शुरू हुआ यह आंदोलन जल्द ही एक व्यापक जन आंदोलन में बदल गया। इसे 2006 के उस जन आंदोलन से जोड़ा जा रहा है जिसने राजतंत्र का अंत किया था। पहले दिन ही 21 लोगों की मौत हुई, जिनमें अधिकांश छात्र थे। अगले दिन स्थिति और बिगड़ गई और 39 और लोग मारे गए। कुल मिलाकर, दस दिनों में 74 प्रदर्शनकारी अपनी जान गंवा चुके हैं।
ओली का इस्तीफा और राजनीतिक संकट
जब प्रदर्शन उग्र हो गए, तो ओली को पीएम हाउस से हेलिकॉप्टर के जरिए सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। अगले दिन उन्होंने इस्तीफा दिया और उनकी जगह पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। ओली का कहना है कि उन्होंने पुलिस को गोली चलाने का आदेश नहीं दिया, लेकिन जनता का गुस्सा उनकी सरकार पर फूटा। संसद भंग हो चुकी है और नए चुनाव मार्च 2026 में होने की संभावना है, लेकिन तब तक राजनीतिक अस्थिरता बनी रह सकती है।
युवाओं से जुड़ने की कोशिश
विश्लेषकों का मानना है कि ओली की वापसी केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह उनके राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की एक रणनीति है। Gen-Z आंदोलन ने युवाओं की शक्ति को स्पष्ट कर दिया है। ऐसे में ओली भी इस वर्ग से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि क्या जनता उन्हें फिर से मौका देगी, या वे इतिहास का एक हिस्सा बनकर रह जाएंगे।