नेपाल में जन-जी प्रदर्शन: विदेशी ताकतों का प्रभाव?

नेपाल में प्रदर्शन की शुरुआत
नेपाल में जन-जी प्रदर्शन: भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ नेपाल में जन-जी प्रदर्शन की शुरुआत हुई। 8 सितंबर को दोपहर में यह प्रदर्शन सामान्य लग रहा था, लेकिन रात होते-होते स्थिति बिगड़ गई। प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने गोलीबारी की, जिसमें लगभग 20 लोग मारे गए। सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा लिया, लेकिन अगले दिन आंदोलन और भी उग्र हो गया। प्रदर्शनकारियों ने नेताओं के घरों, राजनीतिक दलों के कार्यालयों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। संसद और राष्ट्रपति भवन को भी नुकसान पहुंचाया गया। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, फिर भी आंदोलनकारी नहीं रुके। इस स्थिति ने सवाल उठाया कि इन प्रदर्शनों का असली उद्देश्य क्या है और इसके पीछे कौन है?
प्रदर्शन जारी, मांगें पूरी होने के बावजूद
मांग पूरी, नहीं रुका प्रदर्शन
सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटाने और नेपाल के गृहमंत्री तथा प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बावजूद जब प्रदर्शन थम नहीं रहा, तो कई सवाल उठने लगे। क्या नेपाल में फैले जन असंतोष का लाभ कोई और उठा रहा है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मांगें मान लिए जाने के बाद भी प्रदर्शनकारी उग्र बने रहे, जैसे उनका उद्देश्य मौजूदा सरकार को पूरी तरह समाप्त करना हो।
विदेशी ताकतों की भूमिका
नेपाल प्रदर्शन के पीछे किसका हाथ?
2017 में नेपाल ने अमेरिका के साथ मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (MCC) के तहत 500 मिलियन डॉलर की सहायता का समझौता किया था। हालांकि, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विदेशी विकास सहायता को 90 दिनों के लिए रोक दिया था, जिससे नेपाल में कई परियोजनाएं ठप हो गईं। रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका ने नेपाल को 1951 से अब तक 791 मिलियन डॉलर से अधिक की आर्थिक सहायता दी है।
हालांकि, MCC समझौते को नेपाली कम्युनिस्ट पार्टियां अमेरिका की 'इंडो-पैसिफिक रणनीति' का हिस्सा मानती हैं, जो चीन के 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव' के जवाब में मानी जाती है।
चीन कभी नहीं चाहता था कि अमेरिका नेपाल में निवेश करे, लेकिन नेपाल ने अमेरिका के साथ समझौता किया और कई बड़ी परियोजनाएं शुरू कीं। इस्तीफा देने वाले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चीन का समर्थक माना जाता रहा है। ऐसे में यह संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका ने नेपाल से चीन का प्रभाव खत्म करने के लिए इस आंदोलन को बढ़ावा दिया हो। वहीं, नेपाल में फैली अशांति के लिए चीन पर भी सवाल उठ रहे हैं।
क्या नेपाल एक मोहरा बन गया है?
नेपाल चीन के कर्ज तले दबा हुआ है और अमेरिका भी बड़ी संख्या में मदद कर रहा था। इस स्थिति में नेपाल केवल एक मोहरा बनकर रह गया है। भारत भी नेपाल में चीन और अमेरिका के निवेश पर नजर रखे हुए है। अब सवाल यह है कि क्या नेपाल में हुए उग्र प्रदर्शनों के पीछे किसी विदेशी ताकत का हाथ है?