Newzfatafatlogo

नेपाल में जनरेशन जेड विद्रोह: डिजिटल प्लेटफॉर्म का प्रभाव और राजनीतिक अस्थिरता

नेपाल में हालिया राजनीतिक उथल-पुथल को 'जनरेशन जेड विद्रोह' कहा जा रहा है, जिसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस विद्रोह ने काठमांडू में हिंसक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है। तीन नेताओं के चीन के साथ संबंध और उनके पश्चिम विरोधी रुख ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। युवाओं का आक्रोश बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार से उपजता है, जिससे संवाद की आवश्यकता बढ़ गई है। जानिए इस विद्रोह के पीछे की कहानी और इसके संभावित परिणाम।
 | 
नेपाल में जनरेशन जेड विद्रोह: डिजिटल प्लेटफॉर्म का प्रभाव और राजनीतिक अस्थिरता

नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल का विश्लेषण

नेपाल में हाल ही में हुई राजनीतिक उथल-पुथल को 'जनरेशन जेड विद्रोह' के रूप में देखा जा रहा है। इस पर गौर करने पर पता चलता है कि जुलाई 2022 में श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को हटाने में जनता को तीन महीने लगे, जबकि अगस्त 2024 में बांग्लादेश की शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने में केवल 15 दिन लगे। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को 9 सितंबर 2025 को हटाने में महज दो दिन लगे।


डिजिटल प्लेटफॉर्म का विद्रोह में योगदान

डिजिटल प्लेटफॉर्म बने विद्रोह का हथियार


इन तीनों देशों के नेताओं को 'आभासी तानाशाह' कहा जाता था, लेकिन उनकी खुफिया एजेंसियां और राजनीतिक पुलिस इस डिजिटल विद्रोह की आहट तक नहीं ले सकीं। जब तक उन्होंने कुछ समझा, तब तक यह विद्रोह सड़कों पर हिंसा और अराजकता में बदल चुका था। निर्दोष लोग मारे जा रहे थे, घायल हो रहे थे और संपत्तियां जल रही थीं। विद्रोह का मुख्य माध्यम चीनी टिक टॉक, डिस्कॉर्ड, वाइबर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बने, जिनका संचालन दुनिया भर में फैले शक्तिशाली समूहों या पूंजीपतियों द्वारा किया जा रहा था.


काठमांडू में राजनीतिक अस्थिरता

काठमांडू में राजनीतिक अस्थिरता


काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह को 2023 में एक पश्चिमी पत्रिका ने 'उभरते नेता' का तमगा दिया था, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी रबी लामिछाने डिजिटल एक्टिविज़्म को हथियार बनाकर पश्चिम समर्थित एनजीओ को साथ जोड़ रहे थे। इसी डिजिटल राजनीतिक खींचतान का परिणाम काठमांडू में हिंसक विरोध प्रदर्शनों के रूप में सामने आया, जिसने राजधानी को आग के हवाले कर दिया.


चीन के साथ नेताओं के संबंध

चीन के करीब थे तीनों नेता


राजपक्षे, शेख हसीना और ओली तीनों ही पश्चिम विरोधी रुख अपनाते रहे और राजनीतिक अस्तित्व के लिए चीन पर निर्भर होते गए। राजपक्षे ने श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह चीन को सौंप दिया, हसीना चटगांव और मोंगला बंदरगाह चीन को देने की योजना बना रही थीं, वहीं ओली ने नेपाल को चीनी बंदरगाहों तक पहुंच दिलाई। विडंबना यह रही कि सत्ता से बेदखल होने से केवल छह दिन पहले ओली बीजिंग में सैन्य परेड में शामिल थे और उन्हें आने वाले तूफान का अंदाज़ा भी नहीं था। भारतीय एजेंसियां भी इस बवंडर को भांपने में नाकाम रहीं.


डिजिटल युग की चुनौतियाँ

डिजिटल युग में बढ़ती चुनौतियां


आज के एल्गोरिदम, एआई और डीप फेक के दौर में इंटरनेट से प्रभावित युवाओं को उकसाना आसान और रोकना लगभग असंभव होता जा रहा है। अरब स्प्रिंग और आईएसआईएस जैसे उदाहरण बताते हैं कि अराजकता केवल और अराजकता को जन्म देती है। पुराने नेतृत्व का अंत तो हो जाता है, लेकिन नया नेतृत्व देश चलाने की क्षमता नहीं रखता। संस्थाएं पल भर में नष्ट हो सकती हैं, पर उन्हें बनाने में वर्षों लगते हैं.


युवाओं से संवाद का महत्व

युवाओं से संवाद ही समाधान


भारतीय उपमहाद्वीप में युवाओं का आक्रोश बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार से उपजता है। म्यांमार और पाकिस्तान जैसे देशों में सेना ने इस असंतोष को दबा दिया, पर नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में यह विस्फोट बनकर फूट पड़ा। खुफिया एजेंसियां डिजिटल राजनीतिक भावनाओं को भांपने में असमर्थ हैं, इसलिए नेताओं को युवाओं से सीधा संवाद करना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को यह समझना होगा कि धारणा ही नई राजनीति की ताकत है.