नेपाल में युवा प्रदर्शनकारियों का उग्र विरोध: सोशल मीडिया बैन के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोग

नेपाल में उग्र प्रदर्शन
Nepal protests 2025 : नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोमवार को बड़ी संख्या में युवा प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। यह विरोध उस सरकारी आदेश के खिलाफ था, जिसमें फेसबुक, यूट्यूब, और एक्स जैसे 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बिना पंजीकरण के बैन करने का निर्णय लिया गया। इस फैसले से मुख्यतः जेनरेशन Z के युवा नाराज़ होकर सड़कों पर उतर आए और संसद भवन की ओर बढ़ने लगे। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने काठमांडू में रात 10 बजे तक कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया है। इसके अलावा, जब प्रदर्शनकारियों ने हिंसक रूप धारण किया, तो "देखते ही गोली मारने" का आदेश भी जारी किया गया है।
संसद भवन के बाहर बेकाबू हुआ प्रदर्शन, पुलिस पर भारी पड़े प्रदर्शनकारी
प्रदर्शनकारियों ने न्यू बानेश्वर क्षेत्र में सुरक्षा बैरिकेड्स को तोड़ते हुए संसद भवन को घेर लिया। हालात इतनी बिगड़ गई कि दंगा नियंत्रण बल को पीछे हटना पड़ा। जब प्रदर्शनकारियों ने संसद के गेट नंबर 2 के पास आगजनी शुरू की, तो पुलिस की प्रतिक्रिया काफी धीमी रही। आग ने जल्दी ही संसद भवन के कुछ हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे सुरक्षा तैयारियों में बड़ी चूक का पता चला।
हिंसा पर उतरी भीड़, पुलिस की कार्रवाई में 5 की मौत, दर्जनों घायल
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों ने आंसू गैस, वॉटर कैनन और रबर बुलेट का इस्तेमाल किया। लेकिन जब हालात बेकाबू हो गए, तो सुरक्षाबलों ने सीधे गोलियां चलाईं। इस फायरिंग में अब तक कम से कम पांच लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 80 से अधिक लोग घायल हुए हैं, जिनमें दो पत्रकार भी शामिल हैं जो घटनाओं की कवरेज कर रहे थे।
कर्फ्यू और शूट-एट-साइट का आदेश, सेना तैनात
सरकार ने काठमांडू में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए रात 10 बजे तक कर्फ्यू लागू किया है। इसके साथ ही, प्रदर्शनकारियों की हिंसा को देखते हुए "देखते ही गोली मारने" का आदेश भी दिया गया है। संसद भवन में आगजनी और तोड़फोड़ के बाद, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आवास के बाहर सेना को तैनात किया गया है। यह निर्णय स्थिति की गंभीरता को देखते हुए लिया गया है।
युवाओं की नाराज़गी और सरकार की चुनौती
यह विरोध केवल सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी पीढ़ीगत असहमति को भी दर्शाता है। आज के डिजिटल युग में, जहां सोशल मीडिया युवाओं की अभिव्यक्ति का मुख्य साधन है, ऐसे प्रतिबंध उन्हें चुप कराने के समान समझा जा रहा है। सरकार के लिए यह संकट केवल कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि अपनी वैधता और जनसमर्थन को बनाए रखने की चुनौती भी बन गया है।