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पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा: मंदिर की संपत्ति और ऐतिहासिक महत्व

पुरी में 27 जून को शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा ने मंदिर की संपत्ति और ऐतिहासिक महत्व को फिर से चर्चा में ला दिया है। इस भव्य उत्सव में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। जगन्नाथ मंदिर, जो भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है, की संपत्ति का अनुमानित मूल्य 150 करोड़ रुपये है। इसके अलावा, 46 वर्षों बाद खोला गया रत्न भंडार भी चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसमें सोने और कीमती पत्थरों का खजाना है। जानें इस मंदिर की भव्यता और उसके महत्व के बारे में।
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जगन्नाथ रथ यात्रा का भव्य उत्सव

ओडिशा के पुरी में 27 जून को आरंभ हुई जगन्नाथ रथ यात्रा ने एक बार फिर से जगन्नाथ मंदिर की विशाल संपत्ति को चर्चा का विषय बना दिया है। इस रथ यात्रा में हर साल लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस भव्य उत्सव के साथ-साथ मंदिर की ऐतिहासिक और आर्थिक संपत्ति पर भी चर्चा हो रही है।


जगन्नाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भारत के सबसे धनी मंदिरों में से एक माना जाता है। मंदिर की संपत्ति का अनुमानित मूल्य लगभग 150 करोड़ रुपये है। इसके अलावा, मंदिर के पास 30,000 एकड़ से अधिक भूमि भी है, जो इसे देश के प्रमुख मंदिरों में से एक बनाती है। मंदिर का प्रबंधन श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) द्वारा किया जाता है, जो ओडिशा सरकार के अधीन है।


46 वर्षों के बाद खुला 'रत्न भंडार' 18 जुलाई 2024 को खोला गया था। तब से इसमें पाए गए खजाने और उनकी कीमत को लेकर बहस चल रही है। सोने, चांदी, हीरे और अन्य कीमती पत्थरों से भरे इस खजाने की प्रारंभिक अनुमानित कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक बताई जा रही है।


18 जुलाई 2024 की सुबह, 11 सदस्यों की एक समिति ने इस रत्न भंडार को खोला। इसके अंदर तीन मोटे कांच की अलमारियाँ, एक बड़ी लोहे की अलमारी और सोने से भरे कई बक्से मिले। ये बक्से इतने भारी थे कि इन्हें अपनी जगह से हिलाना भी संभव नहीं था। इसलिए, टीम ने 7 घंटे की मेहनत के बाद इनमें से सामान निकाला और उन्हें सीधे भगवान जगन्नाथ के शयनकक्ष में ले जाया गया।


जगन्नाथ संस्कृति के विशेषज्ञों के अनुसार, रत्न भंडार में मिले सोने और आभूषणों की कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है, और रत्नों का सही मूल्यांकन अभी बाकी है। उल्लेखनीय है कि कुछ विशेष अवसरों पर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को 209 किलो सोने से सजाया जाता है, जिससे मंदिर की भव्यता और बढ़ जाती है। यह मंदिर 12वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था और चार धाम तीर्थ स्थलों में से एक है।