पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने ट्रंप की नीतियों पर उठाए सवाल, भारत-रूस संबंधों का श्रेय दिया
भारत-रूस संबंधों पर ट्रंप का प्रभाव
वॉशिंगटन: भारत और रूस के बीच संबंधों पर टिप्पणी करते हुए, अमेरिका के पूर्व पेंटागन अधिकारी माइकल रुबिन ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर कटाक्ष किया है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को मिले सम्मान का श्रेय रूस को नहीं, बल्कि ट्रंप की नीतियों को जाता है, जिन्होंने दोनों देशों को निकट लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रुबिन ने मजाक में कहा कि इस उपलब्धि के लिए ट्रंप को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए।
रुबिन ने एक मीडिया चैनल से बातचीत में कहा कि पुतिन की भारत यात्रा मॉस्को के लिए बेहद सफल रही और भारत द्वारा प्रदत्त सम्मान अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। उन्होंने यह भी बताया कि ट्रंप की नीतियों के कारण भारत और रूस के बीच बढ़ती निकटता स्वाभाविक है।
उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि पुतिन की यात्रा के दौरान हुए समझौतों में से कितने वास्तव में सहयोग में बदलेंगे और कितने ऐसे हैं जो भारत की नाराजगी का परिणाम हैं, जो हाल के समय में ट्रंप के व्यवहार के कारण उत्पन्न हुई।
रुबिन के अनुसार, अमेरिका में इस घटनाक्रम को लेकर दो अलग दृष्टिकोण हैं। ट्रंप के समर्थक इसे उनकी नीति की सफलता मानेंगे, जबकि उनके विरोधी इसे कूटनीतिक विफलता के रूप में देखेंगे। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने भारत-अमेरिका संबंधों को कमजोर किया है और कई निर्णय लिए हैं जो पाकिस्तान, तुर्की और कतर जैसे देशों के प्रति झुकाव दर्शाते हैं।
रुबिन ने यह भी कहा कि वॉशिंगटन के कई विशेषज्ञ इस बात से चकित हैं कि ट्रंप ने अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती रणनीतिक एकजुटता को कैसे कमजोर किया। उनका मानना है कि ट्रंप इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे और भारत-रूस की निकटता को अपनी विदेश नीति का परिणाम बताने की कोशिश करेंगे।
पुतिन द्वारा भारत को ऊर्जा की निरंतर आपूर्ति के आश्वासन पर रुबिन ने कहा कि अमेरिका भारत की ऊर्जा जरूरतों को समझने में असफल रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीयों ने नरेंद्र मोदी को इसलिए चुना है ताकि वे भारत के हितों की रक्षा कर सकें। भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है, और उसकी ऊर्जा जरूरतें विशाल हैं। अमेरिका को भारत को उपदेश देना बंद करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका भी तब रूस से ऊर्जा खरीदता है जब उसके पास विकल्प सीमित होते हैं। रुबिन ने सवाल किया कि यदि अमेरिका नहीं चाहता कि भारत रूसी ऊर्जा खरीदे, तो वह भारत को कम कीमत पर पर्याप्त ईंधन उपलब्ध कराने के लिए क्या कर रहा है? उन्होंने कहा कि यदि कोई वास्तविक विकल्प उपलब्ध नहीं है, तो चुप रहना ही बेहतर है, क्योंकि भारत को अपनी सुरक्षा और आवश्यकताओं को प्राथमिकता देनी होगी।
