प्रधानमंत्री मोदी की तमिलनाडु यात्रा: एक राजनीतिक संदेश

प्रधानमंत्री की यात्रा का महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया यात्रा ने तमिलनाडु में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश दिया। गंगईकोंडा चोलपुरम में आयोजित वार्षिक आदि तिरुवथिरई उत्सव के समापन समारोह में, उन्होंने चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम और उनके पिता राजराजा चोल प्रथम की विरासत पर प्रकाश डाला।
उद्यमशीलता और संप्रभुता पर जोर
प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि आधुनिक भारत व्यापार के विस्तार और संप्रभुता की रक्षा में प्राचीन चोल साम्राज्य की तरह उद्यमशील होगा। यह उत्सव राजेंद्र चोल के दक्षिण-पूर्व एशिया के समुद्री अभियानों की 1,000वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया गया।
चोल राजवंश की विरासत
चोल राजवंश की भव्यता को याद करना महत्वपूर्ण है, लेकिन उनके शासन के कुछ अन्य पहलू भी हैं जो आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं। जल प्रबंधन, भू-राजस्व संग्रह और लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं इस विरासत का हिस्सा हैं। चोलों ने बुनियादी ढांचे के निर्माण में कई महत्वपूर्ण सबक सीखे हैं।
भूकंपों का अध्ययन
दक्षिणी प्रायद्वीप पिछले 200 वर्षों में कई भूकंपों का केंद्र रहा है। पुरातत्वविदों का मानना है कि मंदिरों की संरचना भूकंपीय लचीलेपन में महत्वपूर्ण है। इन मंदिरों का अध्ययन समकालीन निर्माण तकनीकों के लिए मूल्यवान हो सकता है।
जल संसाधनों का प्रबंधन
जल संसाधनों का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण सीख हो सकता है। कावेरी डेल्टा में बाढ़ के दौरान पानी का सही उपयोग न होना एक गंभीर समस्या है। प्रधानमंत्री ने इसे स्थानीय निकायों के कार्यों का विश्लेषण करने का एक अवसर बताया।
प्रतिमाओं की स्थापना
प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की कि केंद्र राजराजा चोल और राजेंद्र चोल की प्रतिमाएं स्थापित करेगा। यह कदम चोलों के प्रशासनिक कौशल को याद दिलाने और शासन में सुधार के लिए प्रेरित करने का प्रयास है।
चोल साम्राज्य का इतिहास
चोलों ने 8वीं से 13वीं शताब्दी तक दक्षिण में मुख्य रूप से तमिल क्षेत्र पर शासन किया। उन्हें पल्लवों, चेरों और अन्य राजवंशों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपने साम्राज्य की रक्षा में सफल रहे।