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प्रधानमंत्री मोदी को मिला 'धर्म चक्रवर्ती' सम्मान, जानें इसका महत्व

प्रधानमंत्री मोदी को जैन समाज ने 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि से सम्मानित किया है। यह सम्मान आचार्य विद्यानंद जी महाराज की 100वीं जयंती पर दिया गया। मोदी ने इस उपाधि को विनम्रता से स्वीकार करते हुए इसे मां भारती को समर्पित किया। जानें इस उपाधि का महत्व और आचार्य विद्यानंद जी का योगदान, जिन्होंने जैन धर्म के मूल्यों को बढ़ावा दिया।
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प्रधानमंत्री मोदी को मिला 'धर्म चक्रवर्ती' सम्मान, जानें इसका महत्व

धर्म चक्रवर्ती पुरस्कार क्या है?

धर्म चक्रवर्ती पुरस्कार का महत्व: शनिवार को जैन समुदाय ने प्रधानमंत्री मोदी को 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि से सम्मानित किया। यह सम्मान आचार्य श्री 1080 विद्यानंद जी महाराज की 100वीं जयंती के अवसर पर दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने 28 जून को विद्यानंद जी महाराज के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर आचार्य श्री 108 प्रज्ञा सागर जी महाराज द्वारा दी गई उपाधि को मोदी ने विनम्रता से स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि यह उपाधि उनके लिए उचित नहीं है, लेकिन भारतीय संस्कृति में जो भी संत देते हैं, उसे 'प्रसाद' मानकर स्वीकार करना चाहिए। इसलिए, उन्होंने इस 'प्रसाद' को मां भारती को समर्पित किया।


उपाधि का अर्थ और महत्व

जैन परंपरा में 'धर्म चक्रवर्ती' का अर्थ है, धर्म के मार्गदर्शक। यह उपाधि उस व्यक्ति को दी जाती है जो सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलता है और नैतिक मूल्यों का प्रचार करता है। प्रधानमंत्री मोदी को यह सम्मान इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने भारत की आध्यात्मिक परंपरा को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया और जैन धर्म के मूल्यों को बढ़ावा दिया। उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए जैन समाज ने उन्हें यह उपाधि दी।


गृह मंत्रालय का बयान

गृह मंत्रालय ने एक बयान जारी कर प्रधानमंत्री मोदी को 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि मिलने की पुष्टि की। मंत्रालय ने बताया कि इस समारोह में केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राष्ट्रसंत परम्पराचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। प्रधानमंत्री मोदी ने आचार्य विद्यानंद जी महाराज के जीवन और विरासत पर आधारित प्रदर्शनी का दौरा किया। इस अवसर पर विद्यानंद जी की जीवनी, स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया गया। यह शताब्दी समारोह 22 अप्रैल 2026 तक चलेगा।


आचार्य विद्यानंद जी महाराज का जीवन

आचार्य विद्यानंद का जन्म 22 अप्रैल 1925 को कर्नाटक के शेदबल बेलगावी में हुआ था। उन्होंने बहुत कम उम्र में जैन समाज में दीक्षा ली और वे विपुल जैन विद्वानों में से एक माने जाते थे। उनके पास 8000 से अधिक छंदों का ज्ञान था और उन्होंने 50 से अधिक ग्रंथों की रचना की। उन्होंने पूरे भारत में नंगे पांव भ्रमण किया और प्राचीन जैन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। 28 जून 1987 को उन्हें 'आचार्य' की उपाधि से सम्मानित किया गया था।