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फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' का ट्रेलर विवादों में, मुस्लिम संगठनों ने उठाई रोकने की मांग

फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' का ट्रेलर जारी होते ही विवादों में घिर गया है। मुस्लिम संगठनों ने इसे एक विशेष समुदाय को बदनाम करने वाला बताया है और इसके खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने आरोप लगाया है कि फिल्म के जरिए इस्लाम और मुसलमानों की छवि को धूमिल किया गया है। उन्होंने सेंसर बोर्ड पर भी सवाल उठाए हैं। जानें इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और मौलाना मदनी की प्रतिक्रिया।
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फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' का ट्रेलर विवादों में, मुस्लिम संगठनों ने उठाई रोकने की मांग

फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' का ट्रेलर विवादों में

फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' का ट्रेलर जारी होते ही विवादों में आ गया है। मुस्लिम संगठनों ने इसे एक विशेष समुदाय को बदनाम करने वाला करार दिया है और इसके तुरंत प्रतिबंध की मांग की है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली, मुंबई और गुजरात हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर कर फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की अपील की है।


मौलाना मदनी का आरोप

मौलाना मदनी ने आरोप लगाया है कि इस फिल्म के माध्यम से इस्लाम, मुसलमानों और देवबंद जैसे धार्मिक संस्थानों की छवि को जानबूझकर धूमिल किया गया है। उन्होंने सेंसर बोर्ड पर अपने नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह फिल्म देश में सांप्रदायिक तनाव और नफरत फैलाने की एक सोची-समझी साजिश है।


ट्रेलर में नूपुर शर्मा का विवादित बयान

ट्रेलर में नूपुर शर्मा के उस विवादित बयान को दिखाया गया है, जिसने पूरे देश में हलचल मचा दी थी, जिसके बाद बीजेपी ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था। इसके अलावा, ट्रेलर में देवबंद को कट्टरपंथ का केंद्र बताते हुए वहां के उलेमा के खिलाफ कई तीखे संवाद शामिल किए गए हैं। मुस्लिम संगठनों का कहना है कि ये बातें भ्रामक हैं और इससे एक समुदाय के प्रति नफरत फैल सकती है।


मौलाना अरशद मदनी की याचिकाएं

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली, मुंबई और गुजरात हाईकोर्ट में संविधान की धारा 226 के तहत याचिकाएं दायर की हैं। इन याचिकाओं में केंद्र सरकार, सेंसर बोर्ड, जॉनी फायर फॉक्स मीडिया प्रा. लि. और एक्स कार्प्स को पक्षकार बनाया गया है। याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील फुज़ैल अय्यूबी द्वारा तैयार की गई है, जिसका डायरी नंबर है: E-4365978/2025.


मौलाना मदनी की प्रतिक्रिया

मौलाना मदनी ने कहा, “यह फिल्म देश में अमन और सांप्रदायिक सौहार्द को भड़काने के लिए बनाई गई है। इसके जरिए एक विशेष वर्ग, उसके उलेमा और धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों की छवि को नुकसान पहुंचाने की साजिश की गई है।” उन्होंने सेंसर बोर्ड पर सवाल उठाते हुए कहा, “यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस फिल्म के पीछे कुछ ताकतें और लोग हैं जो एक विशेष समुदाय की छवि को खराब कर देश की बहुसंख्यक आबादी के बीच उनके खिलाफ जहर भरना चाहते हैं।”


सेंसर बोर्ड पर आरोप

मौलाना ने कहा कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास कर सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 की धारा 5B और 1991 की सार्वजनिक प्रदर्शन शर्तों का उल्लंघन किया है। “ऐसा लगता है कि सेंसर बोर्ड अब सांप्रदायिक शक्तियों के हाथों की कठपुतली बन गया है।” उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब बोर्ड ने किसी विवादास्पद फिल्म को हरी झंडी दी है।


ट्रेलर में संवेदनशील विषय

फिल्म के 2 मिनट 53 सेकंड लंबे ट्रेलर में 'ज्ञानवापी मस्जिद' जैसे मामलों का उल्लेख है, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट और जिला अदालतों में विचाराधीन हैं। याचिका में कहा गया है कि ये विषय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में दिए गए नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। ट्रेलर के संवादों और दृश्यों को 'मुस्लिम-विरोधी' बताया गया है, जिनसे देश के सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंच सकता है।