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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर राजनीतिक विवाद

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक विवाद बढ़ता जा रहा है। विपक्षी दलों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं, जबकि सत्ताधारी पक्ष आरोप लगा रहा है कि विपक्ष घुसपैठियों के सहारे चुनाव जीतने की कोशिश कर रहा है। चुनाव आयोग ने अभी तक घुसपैठियों के नाम हटाने की पुष्टि नहीं की है। जानें इस मुद्दे की सच्चाई और आगामी चुनावों पर इसके प्रभाव के बारे में।
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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर राजनीतिक विवाद

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर विरोध

बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण, जिसे एसआईआर कहा जाता है, के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी हैं। विपक्षी दल संसद के कामकाज को बाधित कर रहे हैं, जबकि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर बिहार में यात्रा कर रहे हैं। इस बीच, सत्ताधारी पक्ष का आरोप है कि विपक्षी दल घुसपैठियों के सहारे चुनाव जीतने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए वे एसआईआर का विरोध कर रहे हैं। भाजपा के कई प्रवक्ताओं ने दिल्ली में इस बात का दावा किया है। बिहार और अन्य राज्यों के प्रमुख नेता भी इसी तरह के आरोप लगा रहे हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग विदेशी नागरिकों या घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची से हटाने का कार्य कर रहा है। लेकिन क्या यह सच है?


वास्तव में, चुनाव आयोग ने अभी तक यह नहीं कहा है कि उसने घुसपैठियों के नाम हटाए हैं। बिहार में 65 लाख नामों को हटाया गया है, जिनमें से लगभग 22 लाख लोग मृत हो चुके हैं, करीब 36 लाख लोग स्थायी रूप से बिहार से बाहर चले गए हैं, और लगभग सात लाख लोगों के नाम एक से अधिक स्थानों पर मतदाता सूची में दर्ज थे। ये तीन मुख्य कारण हैं जिनके आधार पर नाम हटाए गए हैं। हालांकि, पहले चरण के दौरान, जब मतगणना के प्रपत्र भरे जा रहे थे, तब मीडिया में यह खबर आई थी कि बड़ी संख्या में बांग्लादेशी, रोहिंग्या और नेपाली लोग मतदाता बने हैं। लेकिन जब मसौदा मतदाता सूची जारी हुई, तो इस आधार पर किसी का नाम नहीं हटाया गया। अब दावों और आपत्तियों पर काम चल रहा है, और अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर या 1 अक्टूबर को जारी की जाएगी। तब यह स्पष्ट होगा कि चुनाव आयोग ने कितने घुसपैठियों के नाम हटाए हैं। अभी तक किसी का नाम विदेशी नागरिकता के आधार पर नहीं हटाया गया है।