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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें न्यायालय ने चुनाव आयोग की कार्रवाई पर सवाल उठाए। कोर्ट ने चिंता जताई कि जिन मतदाताओं के नाम हटाए जा सकते हैं, उन्हें आपत्ति दर्ज कराने का पर्याप्त समय नहीं मिलेगा। इस प्रक्रिया में फर्जी मतदाताओं के नाम हटाने के साथ-साथ कुछ असली मतदाताओं के नाम भी गलत तरीके से कटने की संभावना है। जानें इस महत्वपूर्ण मुद्दे के बारे में और अधिक जानकारी।
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बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण का विवाद

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। आज सुप्रीम कोर्ट में इस विषय पर सुनवाई हुई, जिसमें न्यायालय ने चुनाव आयोग की गतिविधियों पर अपनी राय व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि आयोग का निर्णय उचित है, लेकिन इसे लागू करने में समय की कमी पर सवाल उठाए। विशेष रूप से, कोर्ट ने चिंता जताई कि जिन मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा सकते हैं, उन्हें अपनी आपत्ति दर्ज कराने का पर्याप्त समय नहीं मिलेगा।


मतदाता सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया क्या है? चुनाव आयोग का मुख्य कार्य न केवल चुनाव कराना है, बल्कि समय-समय पर मतदाता सूची को अद्यतन करना भी है। यदि कोई व्यक्ति निधन हो जाता है या अपना निवास स्थान बदलता है, तो उसका नाम सूची से हटा दिया जाता है। वहीं, नए मतदाता, जैसे कि 18 वर्ष के युवा, को सूची में शामिल किया जाता है। चुनाव आयोग यह पुनरीक्षण हर चुनाव से पहले करता है। इस बार बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्णय लिया गया है, जो 2003 के बाद पहली बार हो रहा है।


किसे दस्तावेज़ दिखाने की आवश्यकता नहीं होगी? संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, जिन व्यक्तियों के नाम 1 जनवरी 2003 की मतदाता सूची में थे, उन्हें पुनरीक्षण के दौरान कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी। ऐसे लगभग 4.96 करोड़ मतदाता इस सूची का हिस्सा होंगे। इसके लिए कोई कागजी प्रक्रिया नहीं होगी, और इन मतदाताओं को गहन पुनरीक्षण में शामिल करने के लिए केवल गणना प्रपत्र की आवश्यकता होगी।


मतदाता सूची से नाम कटने का कारण क्या है? रिवीजन के दौरान, जो मतदाता फर्जी हैं या जिनका नाम गलत तरीके से जोड़ा गया है, उनके नाम हटा दिए जाएंगे। यह प्रक्रिया चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाए रखने के लिए आवश्यक है। हालांकि, इस संदर्भ में एक समस्या है। 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि यदि किसी व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट में है, तो उसे हटाया नहीं जा सकता। कुछ लोगों का कहना है कि यह नया कदम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है।


मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया क्या है? मतदाता सूची से किसी का नाम हटाने के लिए पूरी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। पहले, चुनाव अधिकारी द्वारा ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया जाता है, जिसमें क्षेत्र के लोग किसी भी मतदाता के नाम पर आपत्ति उठा सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी आपत्ति दर्ज करता है, तो उसके बाद नोटिस भेजी जाती है। यदि नोटिस का जवाब नहीं मिलता, तो मतदाता का नाम हटा दिया जाता है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।


बिहार में क्या समस्याएँ हैं? बिहार में आगामी वोटर लिस्ट रिवीजन में यह संभावना जताई जा रही है कि कई फर्जी मतदाताओं के नाम काटे जाएंगे। इन मतदाताओं के पास अपनी भारतीय नागरिकता को साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ नहीं होंगे, और उन्हें सूची से हटा दिया जाएगा। हालांकि, इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण समस्या है। ऐसा माना जा रहा है कि कुछ असली मतदाताओं का नाम भी गलत तरीके से कट सकता है, जिससे उनकी भागीदारी प्रभावित हो सकती है।