बिहार विधानसभा चुनाव: अफवाहों का प्रभाव और प्रचार की रणनीतियाँ
बिहार विधानसभा चुनाव की संक्षिप्त जानकारी
बिहार विधानसभा चुनाव संभवतः अब तक का सबसे संक्षिप्त चुनाव रहा है। चुनाव की घोषणा 6 अक्टूबर को की गई थी, और 40 दिनों के भीतर चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। अंतिम चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा, और तीन दिन बाद, 14 नवंबर को वोटों की गिनती की जाएगी। हालांकि, ये 40 दिन प्रचार के लिए अत्यंत सक्रिय रहे हैं। दर्जनों हेलीकॉप्टर उड़ान भरते रहे और नेताओं की हजारों जनसभाएं आयोजित की गईं। इसके साथ ही, सोशल मीडिया पर भी प्रचार का एक अलग ही स्तर देखने को मिला। यह चुनाव सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग का पहला बिहार चुनाव था, और इसकी शक्ति का उपयोग अफवाह फैलाने के लिए अधिक किया गया। इस बार के चुनावों को अफवाहों का चुनाव कहा जा सकता है।
अफवाहों का प्रभाव
इस चुनाव में दो प्रमुख अफवाहें फैलीं, जिनका गहरा प्रभाव पड़ा। पहली अफवाह यह थी कि नीतीश कुमार की सरकार ने महिलाओं के खातों में जो 10,000 रुपये भेजे हैं, यदि वे वोट नहीं डालती हैं, तो यह राशि वापस ले ली जाएगी। यह अफवाह एनडीए द्वारा फैलाई गई थी, जिसके परिणामस्वरूप छठ पूजा के बाद भी बड़ी संख्या में महिलाएं वोट डालने के लिए रुकीं। इसी से जुड़ी एक और अफवाह राजद द्वारा फैलाई गई कि यह राशि एक कर्ज है, जिसे लौटाना होगा। इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को हर सभा में स्पष्ट करना पड़ा कि पैसे लौटाने की आवश्यकता नहीं है।
मतदाता सूची और नागरिकता
दूसरी महत्वपूर्ण अफवाह यह थी कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद चुनाव आयोग के पास सभी डेटा है, और जो लोग वोट नहीं डालेंगे, उनकी नागरिकता संदिग्ध हो जाएगी। इस अफवाह का लाभ महागठबंधन को मिला, क्योंकि बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता वोट डालने पहुंचे।
राजनीतिक अफवाहों का प्रचार
राजनीतिक अफवाहों में एक और बात यह प्रचारित हुई कि, 'जहां तीर नहीं है वहां लालटेन ही तीर है'। इसका अर्थ था कि जहां नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू का उम्मीदवार नहीं है, वहां उनके समर्थक राजद को वोट दे रहे हैं। यह अफवाह पिछले चुनाव के संदर्भ में फैली, जब भाजपा के समर्थन से चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने नीतीश कुमार के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव के पहले दिन से यह प्रचारित किया गया कि नीतीश का समर्थक वर्ग पिछली बार का बदला ले रहा है।
भविष्य की संभावनाएँ
चुनाव के दौरान यह भी अफवाह फैली कि चुनाव के बाद भाजपा किसी भी स्थिति में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी, जिससे यह धारणा बनी कि नीतीश और लालू फिर से मिल सकते हैं। इसके अलावा, प्रशांत किशोर के बारे में भी यह कहा गया कि वे नीतीश के लिए काम कर रहे हैं, जिससे नीतीश के पक्ष में विभिन्न जातियों का वोट एकजुट हुआ।
