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बॉम्बे हाईकोर्ट ने 30 साल बाद पति को आत्महत्या मामले में किया बरी

बॉम्बे हाईकोर्ट ने लगभग 30 साल बाद एक पति को उसकी पत्नी की आत्महत्या के मामले में बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि घरेलू झगड़े और रंग-रूप पर की गई टिप्पणियां तब तक अपराध नहीं मानी जा सकतीं, जब तक वे आत्महत्या का सीधा कारण न बनें। इस मामले में पति पर आरोप था कि उसने पत्नी को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। जानें इस महत्वपूर्ण फैसले के पीछे की कहानी और अदालत की टिप्पणियां।
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने 30 साल बाद पति को आत्महत्या मामले में किया बरी

सतारा आत्महत्या मामला

सतारा आत्महत्या मामला: लगभग तीन दशकों के बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी की आत्महत्या के मामले में निर्दोष करार दिया है। अदालत ने कहा कि घरेलू झगड़े और रूप-रंग पर की गई टिप्पणियां तब तक अपराध नहीं मानी जा सकतीं, जब तक वे आत्महत्या का सीधा कारण न बनें।


मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, यह मामला जनवरी 1995 का है, जब महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक 23 वर्षीय युवक की पत्नी ने कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। मृतका ने आत्महत्या से पहले अपने माता-पिता को बताया था कि उसका पति और ससुराल वाले उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। 1998 में, सत्र न्यायालय ने पति को पांच साल की सजा सुनाई थी, जिसे आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।


आरोपों का विवरण

क्या थे आरोप?


अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि पति ने पत्नी के रंग को लेकर ताना मारा, उसे पसंद न करने की बात कही और दूसरी शादी की धमकी दी। ससुर ने उसके पकाए खाने की आलोचना की और असंतोष व्यक्त किया। हालांकि, हाईकोर्ट ने माना कि ये बातें "वैवाहिक जीवन से उत्पन्न घरेलू विवाद" हैं, न कि आत्महत्या के लिए उकसाने वाले गंभीर अपराध।


हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

हाईकोर्ट की टिप्पणी


जस्टिस एस.एम. मोडक की पीठ ने कहा, "ऐसे झगड़े वैवाहिक जीवन में सामान्य होते हैं। जब तक प्रताड़ना इतनी गंभीर न हो कि महिला के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प न बचे, तब तक यह अपराध नहीं माना जा सकता।" कोर्ट ने आगे कहा, "अदालतें हर पारिवारिक विवाद को आपराधिक मामला नहीं बना सकतीं।"


साक्ष्य का अभाव

साक्ष्य में नहीं था सीधा संबंध


कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि कथित प्रताड़ना और आत्महत्या के बीच कोई सीधा संबंध था। ट्रायल कोर्ट ने आपराधिक धाराओं के मूल तत्वों को नजरअंदाज कर दोषसिद्धि दी थी, जिसे अब रद्द कर दिया गया।


न्याय की प्राप्ति

आखिरकार मिली न्याय की सांस


करीब 30 साल तक मुकदमे का सामना करने के बाद, आरोपी को अंततः राहत मिली है और उसे रिहा कर दिया गया है। कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया है कि हर घरेलू विवाद को आपराधिक रंग नहीं दिया जा सकता।