ब्रिक्स+ सम्मेलन: वैश्विक दक्षिण के लिए नेतृत्व की कमी

ब्रिक्स+ सम्मेलन का विश्लेषण
ब्रिक्स+ के रियो सम्मेलन का मुख्य निष्कर्ष यह है कि इस समूह में शामिल देशों की प्राथमिकताएं इतनी भिन्न हैं कि यह वर्तमान में वैश्विक दक्षिण को नई दिशा या नेतृत्व प्रदान करने में असफल प्रतीत हो रहा है।
ब्राजील के रियो डी जनेरो में आयोजित ब्रिक्स+ शिखर सम्मेलन में किसी को भी आहत न करने की नीति अपनाई गई। इसके परिणामस्वरूप, संयुक्त विज्ञप्ति एक कमजोर दस्तावेज के रूप में सामने आई। उदाहरण के लिए, इसमें ईरान पर हुए हमलों की निंदा की गई और उन्हें 'अंतरराष्ट्रीय कानून' का उल्लंघन बताया गया। लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि हमला किसने किया। इस प्रकार, इजराइल और अमेरिका का नाम लेने से ब्रिक्स+ ने बचने का प्रयास किया। इसी तरह, साझा बयान में 'एकतरफा आयात शुल्क और गैर-टैरिफ उपायों में वृद्धि' की आलोचना की गई, लेकिन यह नहीं बताया गया कि टैरिफ युद्ध किसने शुरू किया। यहां भी अमेरिका का नाम लेने से बचा गया।
कश्मीर में पहलगाम हमले की ब्रिक्स+ ने स्पष्ट निंदा की। साझा बयान में 'सीमापार आतंकवाद सहित सभी प्रकार के आतंकवाद' की निंदा की गई, लेकिन भारत को प्रभावित करने वाले सीमापार आतंकवाद के स्रोत के बारे में चुप्पी साधी गई। कुल मिलाकर, ब्रिक्स+ के रियो सम्मेलन का सार यह है कि इस समूह में शामिल देशों की प्राथमिकताएं इतनी भिन्न हैं कि यह वैश्विक दक्षिण को नई दिशा देने में असफल है। पिछले वर्ष का ब्रिक्स+ शिखर सम्मेलन रूस के कजान में हुआ था।
चूंकि रूस का ध्यान डॉलर से अलग अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली बनाने पर है, इसलिए वहां यह मुद्दा प्रमुखता से रखा गया था। लेकिन ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने इस बार डोनाल्ड ट्रंप को नाराज नहीं करना चाहा, जिससे यह मुद्दा दबा रहा। अगला ब्रिक्स+ शिखर सम्मेलन भारत में होगा, जहां भारत की विदेश और आर्थिक नीति अमेरिका की ओर झुकी हुई है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगले वर्ष भी ब्रिक्स+ में अमेरिका के नेतृत्व वाले विश्व व्यवस्था के विकल्प पर चर्चा का उत्साह कम रहेगा। रूस और चीन इस मंच को कितना प्रभावित कर पाएंगे, यह इस विकल्प पर चर्चा की दिशा तय करेगा। अन्यथा, यह मंच केवल एक चर्चा का स्थान बना रहेगा।