भारत और अमेरिका के व्यापार संबंधों में चुनौतियाँ: विदेश मंत्री का बयान

भारत और अमेरिका के व्यापार समझौते पर विदेश मंत्री की टिप्पणी
विदेश मंत्री से यह अपेक्षा की जाती है कि वे न केवल वैश्विक प्रवृत्तियों और नई तकनीकों की चुनौतियों का विश्लेषण करें, बल्कि देश की नई भूमिका पर भी प्रकाश डालें।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया है कि भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। उन्होंने कहा कि अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा बाजार है, इसलिए भारत को उसके साथ व्यापार की शर्तों पर सहमत होना आवश्यक है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका को भारत की 'लक्ष्मण रेखाओं' का सम्मान करना चाहिए। इन लक्ष्मण रेखाओं का विवरण उन्होंने नहीं दिया, लेकिन ज्ञात तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भारत अमेरिकी कंपनियों के लिए अपने कृषि और डेयरी बाजार को पूरी तरह से खोलने के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा, पेट्रोलियम खरीदने में भी भारत अमेरिका की भू-राजनीतिक आवश्यकताओं के अनुसार नहीं चल सकता।
जयशंकर की टिप्पणियों से यह स्पष्ट होता है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन भारत की किसी भी 'लक्ष्मण रेखा' का सम्मान करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में भारत के सामने विकल्प क्या हैं? इस प्रश्न पर भारत सरकार की स्थिति स्पष्ट नहीं है। यह एक ऐसी समस्या है जिसका पूर्वानुमान शायद भारत के आर्थिक और कूटनीतिक नीति निर्माताओं ने नहीं लगाया था। अब जब यह स्थिति सामने आई है, तो उनके हाथ-पांव फूले हुए हैं। यह संकेत कौटिल्य इकॉनमिक कॉन्क्लेव में जयशंकर के संवाद से मिलता है। उन्होंने वैश्विक परिस्थितियों, भू-आर्थिकी, और नए शक्ति संतुलन के उभार का उल्लेख किया, लेकिन भारत की भूमिका के बारे में कोई स्पष्टता नहीं दी।
इसलिए, उनकी बातों पर ध्यान देने पर यह भ्रम होता है कि वे विदेश नीति के नेता से अधिक एक अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक की तरह बोल रहे हैं। विदेश मंत्री से यह अपेक्षा नहीं होती कि वे केवल नई प्रवृत्तियों और तकनीकों की चुनौतियों का विश्लेषण करें। उनसे यह अपेक्षित है कि वे बदलते हालात में भारत की नई भूमिका पर प्रकाश डालें। ऐसा करने में असमर्थता, जयशंकर की स्थिति को स्पष्ट करती है कि वे यह भी नहीं बता पा रहे हैं कि भारत नई परिस्थितियों का सामना कैसे करेगा। यह सरकार की दिग्भ्रमित स्थिति का एक स्पष्ट उदाहरण है।