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भारत की 21वीं सदी: एक चौथाई सफर का आकलन

साल 2025 के अंत तक, 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा पूरा हो जाएगा। यह लेख भारत के पिछले 25 वर्षों के सफर का आकलन करता है, जिसमें शासन के विकेंद्रीकरण, संचार क्रांति, धार्मिक परिवर्तन और भ्रष्टाचार की स्थिति पर चर्चा की गई है। जानें कि भारत ने क्या हासिल किया और भविष्य में क्या चुनौतियाँ सामने हैं।
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भारत की 21वीं सदी: एक चौथाई सफर का आकलन

भारत का 21वीं सदी में सफर

साल 2025 के अंत तक, 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा पूरा हो जाएगा। यह समय है यह जानने का कि पिछले 25 वर्षों में भारत ने क्या हासिल किया। एक चौथाई सदी के संदर्भ में नफा-नुकसान का आकलन करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोई अन्य देश इस सदी में प्रवेश करने के लिए इतनी तत्परता से नहीं था। भारत ने 21वीं सदी में कदम रखने की तैयारी 1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के साथ शुरू की थी। उन्होंने संचार क्रांति का उल्लेख किया, जो इस सदी की तैयारी से जुड़ी थी। उन्होंने पंचायतों के त्रिस्तरीय ढांचे के माध्यम से शासन के विकेंद्रीकरण का मार्ग प्रशस्त किया और नौकरशाही में सुधार के लिए उपाय सुझाए।


विकेंद्रीकरण के प्रयास

21वीं सदी के एक चौथाई बीतने के बाद, यदि हम शासन के विकेंद्रीकरण के प्रयासों का विश्लेषण करें, तो यह महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के समाप्त होने और इसके स्थान पर विकसित भारत जी राम जी बिल के लागू होने से स्पष्ट होगा। संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के माध्यम से पंचायती राज और स्थानीय निकायों की व्यवस्था लागू की गई थी। मनरेगा की नींव इसी बुनियाद पर रखी गई थी, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा रोजगार की गारंटी दी गई थी। लेकिन अब नया कानून रोजगार की गारंटी को समाप्त कर देगा और पंचायतों की भूमिका को कम कर देगा।


संचार क्रांति का आकलन

संचार क्रांति की बात करें तो पिछले चार दशकों में भारत ने केवल उपयोगकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई है। आज भी हम अमेरिका में बने कंप्यूटर के उपयोगकर्ता हैं। भारत में सबसे अधिक इंटरनेट और सोशल मीडिया उपयोगकर्ता हैं, लेकिन हमने न तो इनका आविष्कार किया है और न ही इनका प्लेटफॉर्म बनाया है। हम केवल उपयोगकर्ता हैं।


धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन

21वीं सदी के चौथाई हिस्से के दौरान, भारत धार्मिक क्रांति के दौर में पहुंच गया है। मंदिरों का निर्माण, नए भजन, और कथावाचकों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत है कि समाज में कट्टरता और असहिष्णुता बढ़ रही है।


भ्रष्टाचार की स्थिति

भ्रष्टाचार की समस्या भी बढ़ती जा रही है। राजीव गांधी ने कहा था कि एक रुपया भेजने पर केवल 15 पैसे लाभार्थी तक पहुंचते हैं। आज भी भ्रष्टाचार संस्थागत हो चुका है। हाल ही में रक्षा मंत्रालय में रिश्वतखोरी के मामले सामने आए हैं।


आर्थिक संघर्ष

देश की 90 प्रतिशत आबादी रोजमर्रा के संघर्षों में उलझी हुई है। पहले किसान आत्महत्या कर रहे थे, अब आर्थिक तंगी के कारण शहरों में भी आत्महत्याएं हो रही हैं। इसके बावजूद, हम 21वीं सदी की दूसरी चौथाई में प्रवेश कर रहे हैं, उम्मीद के साथ।