भारत की जनसंख्या वृद्धि पर चिंता: क्या आर्थिक असुरक्षा है मुख्य कारण?

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में जनसंख्या वृद्धि की चिंता
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने भारत की जनसंख्या वृद्धि को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश की प्रजनन दर घटकर 1.9 पर आ गई है, जो कि रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान में इसका प्रभाव स्पष्ट नहीं है, लेकिन भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह रिपोर्ट भारत समेत 14 देशों के सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जो दर्शाते हैं कि लोग संतान पैदा करने में असमर्थ हैं।
मेडिकल और सामाजिक कारणों का प्रभाव
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत में कई चिकित्सा और सामाजिक कारण हैं, जो लोगों को माता-पिता बनने से रोक रहे हैं। आर्थिक अस्थिरता इस संदर्भ में सबसे बड़ा डर बनकर उभरी है।
बांझपन और स्वास्थ्य समस्याएं
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 13% लोग बांझपन या गर्भधारण में कठिनाई के कारण संतान सुख से वंचित हैं। वहीं, 14% लोग प्रेग्नेंसी से जुड़ी चिकित्सा समस्याओं के कारण माता-पिता नहीं बन पा रहे हैं। इसके अलावा, 15% लोग खराब स्वास्थ्य या गंभीर बीमारियों को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं।
आर्थिक असुरक्षा का प्रभाव
आर्थिक स्थिति सबसे बड़ा कारण है। लगभग 38% भारतीयों ने कहा कि उनके पास पर्याप्त संसाधनों की कमी के कारण वे संतान नहीं पैदा कर रहे हैं। उन्हें चिंता है कि अधिक बच्चों के होने पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और जीवन की अन्य आवश्यकताओं को पूरा करना मुश्किल होगा।
आवास और रोजगार की कमी
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 22% लोगों की चिंता आवास को लेकर है, जबकि 21% लोगों ने रोजगार की कमी को इसका कारण बताया है। उनका मानना है कि जब तक आय और रहने की जगह सुनिश्चित नहीं होती, तब तक परिवार बढ़ाना जोखिम भरा है।
अमेरिका में भी समान चिंताएं
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका में भी 38% लोगों ने आर्थिक चिंताओं का जिक्र किया है। यह स्पष्ट है कि यह समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर युवा पीढ़ी इस भय और अस्थिरता का सामना कर रही है।
विशेषज्ञों की चिंता
जनसंख्या विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भविष्य में जनसंख्या संतुलन बिगड़ सकता है। इससे कार्यबल में कमी, वृद्ध आबादी का बोझ और सामाजिक ढांचे पर दबाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।