भारत के मुख्य न्यायाधीश ने युवा वकीलों को दी महत्वपूर्ण सलाह, न्यायिक प्रणाली पर रखी बेबाक राय

मुख्य न्यायाधीश का कार्यक्रम और विचार
भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अपने पैतृक गांव दरापुर में एक कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने न्यायिक प्रणाली और युवा वकीलों के भविष्य पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि न्याय का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब यह लोगों की दहलीज तक पहुंचे।
युवा वकीलों के लिए चेतावनी
6 महीने में मर्सिडीज चाहिए तो...
मुख्य न्यायाधीश ने युवा कानून छात्रों और नए वकीलों को चेतावनी दी कि यदि कोई बिना अनुभव के सीधे कोर्ट में बहस करने की सोचता है और छह महीने में मर्सिडीज या BMW की चाह रखता है, तो उसे अपनी मंशा पर विचार करना चाहिए।
प्रशिक्षण की आवश्यकता
जूनियर वकीलों को जरूरी है प्रशिक्षण
उन्होंने सलाह दी कि नए वकीलों को पहले वरिष्ठ वकीलों के साथ रहकर प्रशिक्षण लेना चाहिए। बिना व्यावहारिक ज्ञान के सीधे प्रैक्टिस शुरू करना नुकसानदायक हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि आजकल कई नए वकील अपने सीनियर्स को बैठने के लिए कुर्सी तक नहीं देते, जो सम्मान की कमी को दर्शाता है।
जज और वकील का संबंध
'जज और वकील बराबरी के भागीदार हैं'
सीजेआई गवई ने कोर्ट की कार्यप्रणाली पर भी महत्वपूर्ण बातें साझा कीं। उन्होंने कहा कि न्यायिक कुर्सी लोगों की सेवा के लिए है और इस कुर्सी से जुड़ी ताकत को किसी को भी अपने सिर पर नहीं चढ़ने देना चाहिए। वकील और न्यायाधीश को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।
सेवानिवृत्ति के बाद की योजनाएं
सेवानिवृत्ति के बाद नहीं लेंगे कोई पद
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि नवंबर 2025 में सेवानिवृत्त होने के बाद वे किसी भी सरकारी पद को स्वीकार नहीं करेंगे। वे रिटायरमेंट के बाद अपने गांव दरापुर, अमरावती और नागपुर में अधिक समय बिताना चाहेंगे।
पिता की पुण्यतिथि पर भावुकता
पिता की पुण्यतिथि पर भावुक हुए गवई
यह कार्यक्रम मुख्य न्यायाधीश के पिता और पूर्व राज्यपाल आर. एस. गवई की 10वीं पुण्यतिथि पर आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि उनके पिता के सिद्धांत और मूल्यों ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में मदद की।
गांव से दिया मार्गदर्शन
गांव की धरती से दिया मार्गदर्शन
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने अपने पैतृक गांव से युवा वकीलों को मार्गदर्शन दिया और कानून की गरिमा, वरिष्ठों के सम्मान और जिम्मेदार न्याय व्यवस्था का संदेश दिया। उनका यह वक्तव्य न केवल कानून के छात्रों बल्कि पूरे न्यायिक क्षेत्र के लिए प्रेरणादायक है।