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भारत में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की बैठक का आयोजन

भारत अक्टूबर में पहली बार संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की बैठक की मेज़बानी करेगा, जिसमें 30 से अधिक देशों की भागीदारी होगी। पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित न करना भारत की कूटनीतिक रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस सम्मेलन में भारत की शांति सेना की भूमिका, पड़ोसी देशों के साथ संतुलन और भविष्य की शांति रणनीतियों पर चर्चा की जाएगी। जानें इस सम्मेलन के पीछे के उद्देश्य और भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करने के प्रयासों के बारे में।
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भारत में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की बैठक का आयोजन

भारत की मेज़बानी में UN शांति सैनिकों की बैठक

भारत में UN शांति सैनिकों की बैठक का आयोजन: नई दिल्ली अक्टूबर में एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन करने जा रहा है। भारत पहली बार संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक योगदानकर्ता देशों के सेना प्रमुखों और उच्च अधिकारियों की मेज़बानी करेगा। इस सम्मेलन में 30 से अधिक देशों की भागीदारी होगी, लेकिन पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित न करना इसे एक रणनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है।


पाकिस्तान और चीन की अनुपस्थिति का महत्व

इस सम्मेलन में पाकिस्तान और चीन की अनुपस्थिति यह दर्शाती है कि भारत आतंकवाद और सीमाई तनाव से जुड़े देशों को अलग-थलग करने की नीति पर कायम है। विशेष रूप से पहलगाम हमले के बाद, जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कूटनीतिक और सैन्य कार्रवाई की थी, जैसे कि इंडस वॉटर ट्रीटी को समाप्त करना और हवाई तथा समुद्री रास्ते बंद करना, इस सम्मेलन में उन्हें बाहर रखना एक प्रतीकात्मक लेकिन महत्वपूर्ण कदम है। चीन का बहिष्कार भी यह दर्शाता है कि भारत उसकी नीतियों और पाकिस्तान के समर्थन को लेकर सतर्क है।


भारत की शांति सेना का योगदान

भारत की शांति सेना में भूमिका और योगदान

भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। 1950 से अब तक, भारत ने 49 मिशनों में दो लाख से अधिक सैनिक भेजे हैं और 179 सैनिकों ने शांति के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। वर्तमान में भारतीय सैनिक लेबनान, सूडान, दक्षिण सूडान, कांगो और गोलान हाइट्स जैसे संकटग्रस्त क्षेत्रों में तैनात हैं। लगभग 2,400 सैनिक केवल दक्षिण सूडान में ही तैनात हैं। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत शांति स्थापना को केवल कूटनीति का हिस्सा नहीं मानता, बल्कि अपने सैनिकों के बलिदान से इसे निभाता आया है।


पड़ोसी देशों के साथ संतुलन

पड़ोसी देशों के साथ संतुलन

जहां पाकिस्तान और चीन को आमंत्रित नहीं किया गया, वहीं बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों को इस सम्मेलन में शामिल किया गया है। यह कदम भारत की क्षेत्रीय साझेदारी को मजबूत करता है। हालांकि, तुर्की ने पाकिस्तान के समर्थन में निमंत्रण ठुकरा दिया। इसके बावजूद, भारत ने 70 देशों के राजदूतों को सबूतों के साथ ब्रीफ किया, जिससे उसकी स्थिति और मजबूत हुई। यह दर्शाता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने पक्ष को मजबूती से रख रहा है और दुनिया के बड़े हिस्से से उसे समर्थन भी मिल रहा है।


शांति की नई रणनीति और भविष्य की दिशा

शांति की नई रणनीति और भविष्य की दिशा

यह सम्मेलन केवल अनुभव साझा करने का मंच नहीं होगा, बल्कि वैश्विक शांति अभियानों के लिए नई रणनीतियों का निर्माण करने का अवसर भी प्रदान करेगा। भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारतीय सैनिक केवल संयुक्त राष्ट्र के अधीन चल रहे अभियानों में ही भाग लेंगे, न कि यूक्रेन या गाजा जैसे विवादों में। यह नीति भारत की संतुलित विदेश रणनीति को दर्शाती है, जहां वह वैश्विक जिम्मेदारी निभा रहा है, वहीं अपने राष्ट्रीय हितों की भी रक्षा कर रहा है।