भारत: होटलों का नया हॉट डेस्टिनेशन

भारत का नया ट्रैवल डेस्टिनेशन
हाल ही में, एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ने भारत को होटलों के लिए “दुनिया का सबसे हॉट ट्रैवल डेस्टिनेशन” करार दिया, जिसमें बिहार का नाम सबसे पहले आया। खासकर पटना में नए ताज होटल का जिक्र किया गया है, जो गंगा के किनारे स्थित है। यहाँ नींबू पानी की कीमतें आसमान छू रही हैं और सजावट बेहद साधारण है। लेख की शैली में हल्की चुटीली टिप्पणी थी, जैसे यह सवाल कर रहा हो—“किसने सोचा था ऐसा?”
सच कहें तो, एक दशक पहले पटना में ताज होटल का खुलना एक असंभव सा विचार था। बिहार का नाम सुनते ही धूल, उपेक्षा और पिछड़ेपन की छवि सामने आती थी। पटना का हवाई अड्डा अब भी जुगाड़ से चल रहा है, और ‘फाइव स्टार’ होटल का मतलब था कुछ स्थानीय होटल, जहां वीवीआईपी और पत्रकार ठहरते थे। पुराने पत्रकारों से मिलने के लिए होटल मौर्या ही एकमात्र विकल्प था।
लेकिन पिछले साल, जब मैं लोकसभा चुनावों के दौरान पटना गई, तो शहर में एक नया बदलाव देखने को मिला। यह अजीब तरह से नया और ताज़ा था। शायद इसलिए क्योंकि मैं कोलकाता से आई थी, जहां केवल उदासी और संकट का माहौल था। पटना में चमचमाती सड़कें, साफ फुटपाथ, काम करती ट्रैफिक लाइट्स और कैफे में लिट्टी-चोखा की जगह कैप्पुचीनो परोसा जा रहा था। मैंने लेमन ट्री होटल चुना, केवल इसलिए कि अब मेरे पास विकल्प थे। और अब ताज होटल भी खुल चुका है।
यह केवल बिहार या पटना की कहानी नहीं है। यह उस भारत की कहानी है, जो अब खुद भारतीयों के लिए ट्रैवल डेस्टिनेशन बनता जा रहा है।
दस साल पहले छुट्टियों का मतलब था—पेरिस, फुकेट या स्विस आल्प्स। अब देशी सैलानी अपने देश में भी खुश हैं। नानी का घर या कोई शांत गांव, जहां नेटवर्क भी ठीक से नहीं आता—अब वह भी एक स्टाइल स्टेटमेंट बन गया है।
और होटल? जैसे हर सब्ज़ीवाले के ठेले पर ऐवोकाडो आ गए हों, वैसे हर छोटे-बड़े शहर में होटल खुल गए हैं—भीलवाड़ा से शोलापुर और गोरखपुर से अलवर तक। हर बजट और हर प्रकार के होटल उपलब्ध हैं।
इस बदलाव का असली मोड़ कोविड के बाद आया। सीमित यात्रा और अनिश्चितता के दौर में भारत ही भारतीयों की मंजिल बन गया। हिमाचल के बुटीक स्टे, राजस्थान की हवेलियां, लद्दाख की मोनास्टिक वॉक्स या फोर्ट कोच्चि के कैफे ट्रेल्स—अब घरेलू ट्रैवल केवल ‘सेकंड बेस्ट’ नहीं रहा, बल्कि यह ‘बकेट लिस्ट’ का हिस्सा बन गया है।
इंस्टाग्राम ने भी इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सोशल मीडिया ने भारत को देखने का नजरिया बदल दिया। घाट अब ‘एस्थेटिक’ बन गए हैं, किले बैकड्रॉप बन गए हैं, और हिल स्टेशन रहस्यमयी लगने लगे हैं। पिछले साल लैंडौर और मसूरी में 20 लाख से अधिक लोग पहुंचे।
धार्मिक पर्यटन भी एक अनपेक्षित ट्रेंड बन गया है। वृंदावन और मथुरा हर वीकेंड पर भरे रहते हैं। अयोध्या अब केवल तीर्थ नहीं, बल्कि रियल एस्टेट की नई मंजिल बन चुकी है।
इस टूरिज़्म वेव को राजनीतिक लाभ भी मिला है। एक्सप्रेसवे अब केवल हाइवे नहीं, बल्कि घर को मंजिल से जोड़ने वाला ‘ब्रिज’ बन गया है। छोटे शहरों में ग्लोबल समिट, म्यूज़िक कॉन्सर्ट और क्रिकेट मैच—हर आयोजन ने एक नई पहचान बनाई है।
क्रेडिट कार्ड, ईएमआई, यूपीआई—हर किसी के पास ‘गेटअवे’ प्लान करने का तरीका है। अब कोई दिल्ली में दिलजीत दोसांझ का कॉन्सर्ट या धर्मशाला में आईपीएल इस वजह से नहीं छोड़ता कि “पैसे कम हैं।” यात्रा अब एक फैशन की तरह जरूरी हो गई है।
जो कुछ हो रहा है, वह केवल ट्रैवल ट्रेंड नहीं है। यह एक आकांक्षा की दिशा बदलने का संकेत है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की पहली तिमाही में भारत एशिया पैसिफिक में सबसे अधिक होटल निर्माण वाला देश बन गया है।
हालांकि, ‘द इकोनॉमिस्ट’ की चेतावनी भी महत्वपूर्ण है। भारत अभी भी विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने में पीछे है। कुशल श्रमिकों की कमी और फाइनेंसिंग की चुनौतियाँ हैं। लेकिन सबसे बड़ा डर ओवरएक्सपेंशन का है।
फिलहाल, इस पल का आनंद लें। पटना में ताज है और भारत में होटल के विकल्प इतने हैं—छोटे, बड़े, लग्ज़री। अब हमें विदेश जाने की जरूरत नहीं है।
हम अब खुद की ओर मुड़े हैं—अपने कैमरों, अपने कार्ड्स, अपनी जिज्ञासा के साथ। पहली बार, भारत बैकड्रॉप नहीं, मंजिल है।