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भारतीय रेलवे का DDEI सिस्टम: सुरक्षा में नई तकनीक का योगदान

भारतीय रेलवे ने यात्रियों की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए डायरेक्ट ड्राइव इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (DDEI) सिस्टम का विकास किया है। यह नया सिग्नलिंग सिस्टम मानव हस्तक्षेप को समाप्त करेगा और दुर्घटनाओं की संभावना को कम करेगा। हाल ही में इसके सफल परीक्षण के बाद, रेलवे इसे पूरे नेटवर्क में लागू करने की योजना बना रहा है। जानें इस प्रणाली के लाभ और बालासोर हादसे के संदर्भ में इसकी आवश्यकता।
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भारतीय रेलवे का DDEI सिस्टम: सुरक्षा में नई तकनीक का योगदान

भारतीय रेलवे का DDEI सिस्टम क्या है?

भारतीय रेलवे का DDEI सिस्टम: भारतीय रेलवे तकनीकी नवाचारों में लगातार आगे बढ़ रहा है। हाल ही में, रेलवे ने हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन का सफल परीक्षण किया है। अब, रेलवे एक नई तकनीक पर काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य यात्रियों की सुरक्षा को और मजबूत बनाना है। इस तकनीक के तहत, रेलवे ने तीन स्टेशनों पर डायरेक्ट ड्राइव इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (DDEI) सिस्टम का विकास किया है, जिसका पायलट परीक्षण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है।


इस सिस्टम का परीक्षण जम्मू और मध्य प्रदेश के ताजपुर सहित तीन स्थानों पर किया गया है। जम्मू रेलवे डिवीजन में पठानकोट के निकट दीनानगर रेलवे स्टेशन पर इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम का परीक्षण करने का एक वीडियो भी जारी किया गया है। रेलवे का मानना है कि यह तकनीक रेल सुरक्षा को बढ़ाने में सहायक होगी और भविष्य में बालासोर जैसी दुर्घटनाओं को रोकने में मददगार साबित होगी।


DDEI सिस्टम की विशेषताएँ

DDEI सिस्टम की विशेषताएँ:


यह नया DDEI सिस्टम एक आधुनिक सिग्नलिंग प्रणाली है, जो मानव हस्तक्षेप को समाप्त कर देगा। रेलवे की योजना है कि इसे भविष्य में पूरे रेल नेटवर्क में लागू किया जाए। इस प्रणाली के माध्यम से पुराने सिग्नलिंग सिस्टम को पूरी तरह से बदल दिया जाएगा। पुराने सिस्टम में मैकेनिकल लिंकेज और रिले आधारित इंटरलॉकिंग होती थी, जबकि नए सिस्टम में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सॉफ्टवेयर के माध्यम से ट्रैक स्विच और सिग्नल्स को नियंत्रित किया जाएगा। यह पूरी प्रणाली तकनीकी रूप से संचालित होगी, जिससे मानव त्रुटियों की संभावना बहुत कम हो जाएगी।


DDEI सिस्टम के लाभ

इसका लाभ:


इस प्रणाली के माध्यम से सभी स्विच सही तरीके से संरेखित होंगे और ट्रैक पर किसी भी प्रकार की गड़बड़ी का ध्यान रखा जाएगा। इससे रेलवे फाटकों के ट्रेन आने से पहले बंद होने और रूट के पूरी तरह से साफ होने की जानकारी आसानी से प्राप्त होगी, जिससे दो ट्रेनों के टकराने की संभावना कम हो जाएगी। नए सिस्टम में गियर की स्थिति भी रियलटाइम में पता चल सकेगी, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना और भी कम हो जाएगी।


पायलट प्रोजेक्ट का आरंभ

पायलट प्रोजेक्ट का आरंभ:


रेलवे ने इस प्रणाली से संबंधित प्रोजेक्ट्स को 2023-24 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया था। रेलवे अधिकारियों का मानना है कि इसके परिणाम सकारात्मक रहे हैं। DDEI में ऑप्टिकल फाइबर केबल के उपयोग से तांबे की केबल की आवश्यकता लगभग 70 प्रतिशत तक कम हो सकती है।


बालासोर हादसा

बालासोर हादसा:


ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे में 297 लोगों की जान गई थी। यह हादसा दो ट्रेनों के टकराने के कारण हुआ था। 2 जून 2023 को हावड़ा से चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस की मालगाड़ी से टकरा गई थी। इस हादसे की मुख्य वजह गलत सिग्नलिंग बताई गई थी। अब रेलवे ने ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए यह नया सिस्टम विकसित किया है।