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मिजोरम में पहली ब्रॉड गेज रेलवे लाइन का उद्घाटन, 70 साल पुराना सपना हुआ साकार

13 सितंबर को मिजोरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन की जाने वाली 'बैरबी-सैरंग' रेलवे लाइन, 70 साल पुराना सपना साकार करेगी। यह 51.38 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन, 142 पुलों और 23 सुरंगों के साथ, यात्रा के समय को 28 घंटे से घटाकर 8 घंटे कर देगी। यह न केवल आम लोगों के लिए, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। जानें इस प्रोजेक्ट की खासियतें और इसके महत्व के बारे में।
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मिजोरम में पहली ब्रॉड गेज रेलवे लाइन का उद्घाटन, 70 साल पुराना सपना हुआ साकार

मिजोरम की ऐतिहासिक रेलवे लाइन का उद्घाटन

पूर्वोत्तर भारत के लिए 13 सितंबर का दिन एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिजोरम की पहली ब्रॉड गेज रेलवे लाइन 'बैरबी-सैरंग' का उद्घाटन करेंगे, जो राज्य के लिए 70 वर्षों से अधूरा सपना पूरा करेगी। यह रेलवे लाइन केवल परिवहन का साधन नहीं है, बल्कि यह इंजीनियरिंग का एक अद्वितीय उदाहरण है, जिसने कठिन पहाड़ों और गहरी खाइयों को पार करते हुए एक नई कहानी लिखी है।


रेलवे लाइन की विशेषताएँ


लंबाई: यह रेलवे लाइन 51.38 किलोमीटर लंबी है, लेकिन इसके हर किलोमीटर में चुनौतियाँ भरी हुई हैं।


पुल और सुरंगें: इस छोटी दूरी में 142 पुल (55 बड़े और 87 छोटे) और 23 सुरंगें शामिल हैं। इस प्रोजेक्ट का 91% हिस्सा पुलों और सुरंगों से होकर गुजरता है, जो इसे भारत के सबसे जटिल रेलवे प्रोजेक्ट्स में से एक बनाता है।


इंजीनियरिंग का कमाल: इसमें भारत का सबसे ऊँचा रेलवे पियर ब्रिज भी शामिल है, जिसकी ऊँचाई 104 मीटर (32 मंजिला इमारत के बराबर) है। इसे इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जा रहा है।


यात्रा का समय कम होगा


इस रेलवे लाइन का सबसे बड़ा लाभ यात्रा के समय में कमी है। पहले, सड़क मार्ग से गुवाहाटी से आइजोल पहुँचने में 28 घंटे से अधिक का समय लगता था, जो थका देने वाला था। अब यह यात्रा केवल 8 घंटे में पूरी होगी, जिससे लगभग 20 घंटे की सीधी बचत होगी।


रणनीतिक महत्व


यह रेलवे लाइन न केवल आम लोगों और व्यापार के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह देश की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा के निकट होने के कारण, यह सेना को रसद और उपकरण तेजी से पहुँचाने में मदद करेगी।


इस प्रोजेक्ट की नींव अंग्रेजों ने रखी थी, लेकिन आज़ादी के बाद 70 वर्षों तक यह सपना अधूरा रहा। अब प्रधानमंत्री मोदी के हाथों इसका उद्घाटन होना, पूर्वोत्तर भारत के विकास के प्रति केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।