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मोहन भागवत ने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी की आवश्यकता पर जोर दिया

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक कार्यक्रम में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि देश को अपनी इच्छा से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ना चाहिए, न कि किसी दबाव में। भागवत ने स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर भी बल दिया। इसके साथ ही, उन्होंने वैश्विक स्तर पर बढ़ती कट्टरता और वोकिज्म को एक गंभीर संकट के रूप में बताया। जानें उनके विचारों के बारे में और कैसे ये मुद्दे देश की नीति को प्रभावित कर सकते हैं।
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मोहन भागवत ने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी की आवश्यकता पर जोर दिया

आत्मनिर्भरता का महत्व

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने 27 अगस्त को एक कार्यक्रम में कहा कि स्वदेशी का असली अर्थ यह है कि देश अपनी इच्छा से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े, न कि किसी बाहरी दबाव के तहत। उन्होंने आत्मनिर्भरता को देश की प्रगति का मूल मंत्र बताया।


उन्होंने कहा, "आत्मनिर्भरता हर चीज की कुंजी है। हमारा देश आत्मनिर्भर होना चाहिए और इसके लिए स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। राष्ट्र की नीति को अपनी मर्जी से अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने की होनी चाहिए, न कि दबाव में। यही स्वदेशी की सच्ची भावना है।" भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भरता का मतलब आयात को पूरी तरह से बंद करना नहीं है। उन्होंने कहा, "दुनिया आपस में जुड़ी हुई है, इसलिए निर्यात-आयात चलता रहेगा, लेकिन इसमें कोई दबाव नहीं होना चाहिए।"




स्वदेशी की भावना का महत्व


भागवत ने यह भी कहा कि स्वदेशी का अर्थ उन वस्तुओं का आयात न करना है, जो देश में पहले से उपलब्ध हैं या आसानी से बनाई जा सकती हैं। उन्होंने कहा, "बाहर से सामान लाने से स्थानीय विक्रेताओं को नुकसान होता है।" उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जो चीजें देश में बनती हैं, उन्हें बाहर से लाने की आवश्यकता नहीं है। केवल वही चीजें जो जीवन के लिए आवश्यक हैं और देश में नहीं बनती, उन्हें आयात किया जाएगा। देश की नीति स्वेच्छा से होनी चाहिए, दबाव में नहीं। यही स्वदेशी है।


वैश्विक चुनौतियाँ

कट्टरता की बढ़ती समस्या


भागवत ने वैश्विक स्तर पर बढ़ती कट्टरता पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशंस बनी, फिर भी द्वितीय विश्व युद्ध हुआ। संयुक्त राष्ट्र बना, लेकिन तीसरे विश्व युद्ध की संभावना को आज नहीं कहा जा सकता। दुनिया में अशांति और संघर्ष हैं। तेजी से बढ़ती कट्टरता के बीच, जो लोग शालीनता और संस्कार नहीं चाहते, वे इस कट्टरता को बढ़ावा देते हैं।"


वोकिज्म: एक वैश्विक संकट


भागवत ने वोकिज्म को एक बड़ा संकट बताते हुए कहा, "नए शब्द जैसे वोकिज्म आदि आए हैं। यह सभी देशों और अगली पीढ़ी के लिए एक गंभीर समस्या है। सभी देशों के संरक्षक चिंतित हैं। धर्म केवल पूजा और भोजन से परे है। सभी धर्मों को चलाने वाला धर्म है, जो विविधता को स्वीकार करता है और संतुलन सिखाता है।"