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राजस संक्रांति: ओडिशा का पारंपरिक त्योहार और इसका महत्व

राजस संक्रांति, जिसे राजा संक्रांति भी कहा जाता है, ओडिशा का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो महिलाओं और लड़कियों से जुड़ा है। यह तीन दिनों तक मनाया जाता है और इस दौरान धरती माता और नारी शक्ति का सम्मान किया जाता है। इस पर्व की पौराणिक मान्यता और विशेषताएँ इसे और भी खास बनाती हैं। जानें इस त्योहार का महत्व, शुभ मुहूर्त और पारंपरिक व्यंजन के बारे में।
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राजस संक्रांति: ओडिशा का पारंपरिक त्योहार और इसका महत्व

राजस संक्रांति का परिचय

आज राजस संक्रांति का पर्व है, जिसे राजा संक्रांति भी कहा जाता है। यह ओडिशा में मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्योहार है, जो मुख्य रूप से महिलाओं और लड़कियों से जुड़ा है। यह उत्सव तीन दिनों तक चलता है, जिसमें प्रकृति, धरती माता और नारी शक्ति का सम्मान किया जाता है। आइए जानते हैं राजस संक्रांति के महत्व और पूजा विधि के बारे में। 


राजस संक्रांति का महत्व

राजा संक्रांति, जिसे रज पर्व भी कहा जाता है, ओडिशा का एक प्रमुख त्योहार है, जो तीन दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु की पत्नी भूमा देवी की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि इस दौरान धरती माता रजस्वला होती हैं, इसलिए इसे प्रकृति और स्त्री शक्ति का उत्सव माना जाता है। यह त्योहार ओडिशा की संस्कृति और सामाजिक एकता का प्रतीक है।


पौराणिक मान्यता

राजस संक्रांति के पीछे एक रोचक पौराणिक कहानी है। कहा जाता है कि इस समय धरती माता, जो देवी पृथ्वी के रूप में जानी जाती हैं, मासिक धर्म से गुजरती हैं। ओड़िया में 'रज' का अर्थ मासिक धर्म है, और यह शब्द 'रजस्वला' से निकला है, जिसका अर्थ है मासिक धर्म वाली महिला। यह पर्व स्त्री के इस प्राकृतिक चक्र को मान्यता देता है और उसे सम्मानित करता है।


त्योहार की विशेषताएँ

राजस संक्रांति ओडिशा का एक खास त्योहार है, जो मुख्यतः लड़कियों और महिलाओं से संबंधित है। यह तीन दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें प्रकृति और नारी शक्ति का सम्मान किया जाता है। पहले दिन को 'पहिली राजा', दूसरे दिन को 'मिथुन संक्रांति' और तीसरे दिन को 'भू दाह' या 'बासी राजा' कहा जाता है। इस दौरान अविवाहित लड़कियाँ विशेष रूप से सजती हैं और पारंपरिक व्यंजन जैसे पोड़ा पीठा का आनंद लेती हैं।


शुभ मुहूर्त

राजा संक्रांति आमतौर पर ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को शुरू होता है और तीन दिनों तक चलता है। 2025 में यह पर्व 14 जून से 16 जून तक मनाया जाएगा। पहले दिन को 'पहिली राजा', दूसरे दिन 'राजा संक्रांति' और तीसरे दिन 'भू-दौ' या 'वसुमती स्नान' कहा जाता है। इस दौरान खेती-बाड़ी का काम बंद रहता है, क्योंकि यह समय धरती को विश्राम देने का माना जाता है।


निर्माण कार्य पर रोक

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान कोई भी निर्माण कार्य, खुदाई या खेती नहीं की जाती है, क्योंकि इस समय धरती आराम कर रही होती है।


महिलाओं का सम्मान

इस त्योहार में महिलाओं का विशेष सम्मान किया जाता है। लड़कियाँ पारंपरिक कपड़े पहनती हैं, सजती-संवरती हैं और झूले झूलती हैं। त्योहार से एक दिन पहले 'सजबाज' होता है, जिसमें तैयारियाँ शुरू होती हैं। झूले इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।


पारंपरिक व्यंजन

ओडिशा में इस अवसर पर पोड़ा पीठा जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। इस दौरान घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं।