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राजस्थान में 55 वर्षीय महिला ने 17वें बच्चे को जन्म दिया

राजस्थान के उदयपुर में 55 वर्षीय रेखा कालबेलिया ने अपने 17वें बच्चे को जन्म दिया है, जो सरकारी जनसंख्या नियंत्रण योजनाओं की विफलता को दर्शाता है। रेखा के पहले 16 बच्चों में से कई की मृत्यु हो चुकी है, और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। यह मामला विकास की धारा के आदिवासी और ग्रामीण इलाकों तक न पहुंचने की सच्चाई को उजागर करता है।
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राजस्थान में 55 वर्षीय महिला ने 17वें बच्चे को जन्म दिया

सरकारी दावों की हकीकत

उदयपुर: जहां एक ओर सरकारें 21वीं सदी में देश को विकसित बनाने के बड़े वादे कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी योजनाओं की वास्तविकता इन दावों की पोल खोलती नजर आ रही है। राजस्थान के उदयपुर जिले के आदिवासी क्षेत्र झाड़ोल से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें 55 वर्षीय रेखा कालबेलिया ने अपने 17वें बच्चे को जन्म दिया है। यह घटना सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिए किए गए करोड़ों रुपये के खर्च की विफलता को उजागर करती है।


यह मामला झाड़ोल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है, जहां रेखा ने अपनी 17वीं संतान को जन्म दिया। उनके पहले 16 बच्चों में से 4 बेटे और 1 बेटी की दुखद मृत्यु हो चुकी है। चिंता की बात यह है कि रेखा के पांच बच्चे पहले से ही शादीशुदा हैं और उनके भी बच्चे हैं, जिससे रेखा दादी और नानी बनने की उम्र में फिर से मां बनी हैं।


रेखा के पति, कवरा कालबेलिया ने अपनी कठिनाईयों का जिक्र करते हुए बताया कि उनके पास रहने के लिए घर नहीं है और वे अत्यंत गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं। बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए उन्हें साहूकारों से 20% ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा है। लाखों रुपये चुकाने के बावजूद वे अब तक कर्ज के जाल से बाहर नहीं निकल पाए हैं। कबाड़ इकट्ठा करके गुजारा करने वाला यह परिवार अपने बच्चों को स्कूल भेजने में भी असमर्थ है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें घर मिला था, लेकिन जमीन का मालिकाना हक न होने के कारण वे बेघर हैं।


झाड़ोल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के स्त्री रोग विशेषज्ञ, डॉ. रोशन दरांगी ने बताया कि जब रेखा को भर्ती कराया गया, तो परिवार ने बताया कि यह उनकी चौथी संतान है। सच्चाई सामने आने पर अस्पताल का स्टाफ भी हैरान रह गया। डॉ. दरांगी ने कहा कि दंपति को नसबंदी के लिए प्रेरित किया जाएगा ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो।


यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जब तक विकास की धारा आदिवासी और ग्रामीण इलाकों के हर घर तक नहीं पहुंचेगी, तब तक केवल आंकड़ों में देश को विकसित दिखाना बेमानी होगा। रेखा और कवरा जैसे अनगिनत परिवारों की यह कहानी सरकारी तंत्र की विफलता और शिक्षा की कमी का एक जीता-जागता प्रमाण है।