संचार साथी ऐप का विवाद: सरकार ने लिया यू-टर्न
संचार साथी ऐप का आदेश वापस
केंद्र सरकार ने 'संचार साथी' ऐप को हर स्मार्टफोन में प्री-इंस्टॉल करने का आदेश वापस ले लिया है। यह कदम सरकार की ओर से अचानक लिया गया है, जो दर्शाता है कि इस मुद्दे पर कोई प्रतिरोध नहीं किया गया। पहले दिन जारी आदेश में कहा गया था कि तीन महीने के भीतर हर स्मार्टफोन में यह ऐप इंस्टॉल होगा, और पुराने फोन में सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए इसे जोड़ा जाएगा। यह ऐप फोन चोरी होने पर उसे खोजने और साइबर धोखाधड़ी से बचाने का दावा करता था। जब इसका विरोध शुरू हुआ, तो दूरसंचार मंत्री ने कहा कि उपयोगकर्ताओं को इसे हटाने का विकल्प दिया जाएगा। इसके बावजूद विरोध जारी रहा, जिसके बाद संचार विभाग ने स्पष्ट किया कि यह ऐप अब प्री-इंस्टॉल नहीं होगा, बल्कि लोग इसे अपनी इच्छा से डाउनलोड कर सकते हैं।
सरकार की मंशा पर सवाल
यह सवाल उठता है कि क्या सरकार को यह नहीं पता था कि हर स्मार्टफोन में किसी ऐप को अनिवार्य करने का आदेश देने पर विरोध होगा? निश्चित रूप से, सरकार को इसकी जानकारी थी। उसे यह भी पता था कि विपक्ष इसे सर्विलेंस स्टेट बनाने का आरोप लगाएगा। फिर भी, यह आदेश जारी किया गया, जिससे यह प्रतीत होता है कि सरकार लोगों की प्रतिक्रिया को परखना चाहती थी। यदि सरकार इस आदेश को लेकर गंभीर होती, तो इतनी आसानी से पीछे नहीं हटती। संचार विभाग का तर्क भी कमजोर है, जिसमें कहा गया कि डेढ़ करोड़ लोगों ने इसे डाउनलोड किया है, इसलिए इसे अनिवार्य करने का निर्णय वापस लिया गया।
डेटा सुरक्षा के मुद्दे
सरकार ने यह भी नहीं बताया कि इस ऐप के माध्यम से एकत्रित डेटा कितने समय तक सुरक्षित रहेगा और इसे किस प्रकार से सुरक्षित रखा जाएगा। ऐप का सोर्स कोड और डेटा सुरक्षा के लिए इनक्रिप्शन के स्तर की जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। यह स्पष्ट नहीं है कि कौन इस डेटा को एक्सेस कर सकेगा और क्या यह किसी थर्ड पार्टी को उपलब्ध कराया जाएगा। यदि सरकार इस मामले में गंभीर होती, तो वह पहले से इन सभी पहलुओं की जानकारी देती।
निजता और सुरक्षा के खतरे
यह ऐप न केवल निजता के लिए खतरा है, बल्कि यह साइबर हमलों का शिकार बनने का जोखिम भी बढ़ाता है। यदि एक सरकारी ऐप करोड़ों लोगों के फोन में हो और कोई हैकर इसे निशाना बनाता है, तो एक साथ कितने लोगों का नुकसान हो सकता है? ऐसे अनगिनत खतरे हैं, जिनकी संभावना स्पष्ट है। यह खतरा इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि सरकारी ऐप्स की सुरक्षा अक्सर कमजोर होती है।
